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कल्पनीय उपाश्रय
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भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमाराधक अनगार को जहाँ कोई उसे जानता हो, वहाँ एक रात्रि का आवास कर सकता है। जहाँ कोई नहीं जानता हो, वहाँ उसे एक या दो रात रहना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक रहना कल्प्य नहीं है। यदि वह एक या दो रात से अधिक प्रवास करे तो उसे (उतने दिनों का)दीक्षाछेद या तदनुरूप तपः प्रायश्चित्त आता है।
- भाषाप्रयोग : कल्पनीय मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ चत्तारि भासाओ भासित्तए, तंजहा-जायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणी, पुटुस्स वागरणी॥७॥
कठिन शब्दार्थ - जायणी - आहार आदि की याचना करने हेतु, पुच्छणी - मार्ग आदि पूछने के निमित्त, अणुण्णवणी - स्थान आदि में रहने हेतु, अनुज्ञा लेने के संदर्भ में, पुटुस्स वागरणी - पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने हेतु।
भावार्थ - मासिकी प्रतिमा के आराधक श्रमण को चार प्रकार की भाषाएँ बोलना - वचनः प्रयोग करना कल्पता है। जैसे - आहार आदि की याचना, मार्ग आदि की पृच्छा, अपेक्षित स्थान आदि की अनुज्ञा तथा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देना।
कल्पनीय उपाश्रय ... मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तंजहा - अहे आरामगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा। मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, तंजहा - अहे आरामगिहं, अहे वियडगिहं, अहे रुक्खमूलगिह। मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स कप्पइ तओ उवस्सया उवाइणावित्तए, तं चेव॥८॥ ____ कठिन शब्दार्थ - तओ - तीन, पडिलेहित्तए - प्रतिलेखन करना, आरामगिहंसि - उद्यान में निर्मित गृह में, वियडगिहंसि - चारों ओर से खुला किन्तु ऊपर से आच्छादित, रुक्खमूलगिहंसि - वृक्ष के नीचे या मूलवर्ती खोखले भाग में। . भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमा के आराधक अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों का प्रतिलेखन करना. कल्पता है - १. उद्यान में निर्मित गृह २. चारों ओर से उन्मुक्त तथा ऊपर .से.आच्छादित गृह ३. वृक्ष का मूल भाग या वहाँ बने हुए गृह में।
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