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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - सप्तम दशा
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गोचर चर्या - मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स छव्विहा गोयर - चरिया पण्णत्ता। तंजहा-पेला, अद्धपेला, गोमुत्तिया, पयंगवीहिया, संबुक्कावट्टा, गत्तु( गंतुं पच्चागया॥५॥
कठिन शब्दार्थ - गोयर-चरिया - गोचरचर्या, पेला - चतुष्कोणमयी पेटिका, अद्धपेला - अर्द्धपेटिका, गोमुत्तिया - वृषभ की मूत्रधारा के सदृश वक्राकार युक्त, पयंगवीहिया - पतंगिये (चतुरिन्द्रिय प्राणी -कीट विशेष), संबुक्कावट्टा - शंबूकावर्त्त - शंख से गोल आवर्त से सदृश, गत्तुपच्चागया - भिक्षार्थ आगे जाकर वापस लोटना।
भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार का गोचरी क्रम छह प्रकार का अभिहित हुआ है -
१. चतुष्कोण पेटी सदृश - चार कोनों की पेटिका के समान भिक्षु चारों कोनों में भिक्षार्थ जाए।
२. अर्द्ध पेटिका सदृश - दो कोनों में वह भिक्षार्थ जाए।
३. गोमूत्रिका - वृषभ के मूत्रोत्सर्ग की धार की तरह टेढे-मेढे क्रम से - भिन्न-भिन्न (आमने-सामने - एक घर इधर, एक घर उधर) स्थानों पर भिक्षार्थ जाए।
४. एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान पर जाने वाले पतंगिये या पक्षी की तरह किसी दूरवर्ती स्थान को भिक्षार्थ जाए।
५.शंख के आवर्त - घुमाव की तरह घूम-घूम कर भिक्षार्थ जाए। ६. जाता या पुनः लौटता हुआ भिक्षा ले।
प्रतिमाधारी का आवासकाल मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ कप्पइ से तत्थ एगराइयं वसित्तए, जत्थ णं केइ ण जाणइ कप्पइ से तत्थ एगरायं वा दुरायं वा वसित्तए, णो से कप्पइ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वत्थए, जे तत्थ एगरायाओ वा . दुरायाओ वा परं वसइ से संतरा छेए वा परिहारे वा॥६॥
कठिन शब्दार्थ - जत्थ - जहाँ, जाणइ - जानता हो, वसित्तए - वास करे, संतरामर्यादा का उल्लंघन, छेए - दीक्षाछेद, परिहारे - तपोरूप प्रायश्चित्त।
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