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एकादश उपासक प्रतिमाएं
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तृतीय प्रतिमा - तृतीय प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्म रुचिशील होता है। अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादिविरमण, प्रत्याख्यान तथा पौषधोपवास आदि को विधिवत् गृहीत किए हुए होता है। वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का भी भलीभाँति परिपालन करता है किन्तु चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा - इन तिथियों में सम्पूर्ण पौषधोपवास का यथाविधि परिपालक नहीं होता।
यह तृतीय उपासक प्रतिमा का स्वरूप है।
चतुर्थ प्रतिमा - चतुर्थ प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्माभिरुचिशील होता है। वह अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादिविरमण प्रत्याख्यान तथा पौषधोपवास आदि को विधिवत् गृहीत किए हुए होता है। वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का भी भलीभाँति परिपालन करता है किन्तु चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा - इन तिथियों में सम्पूर्ण पौषधोपवास का यथाविधि परिपालक होता है। वह एकरात्रिक उपासक प्रतिमा - कायोत्सर्गात्मक उपासक प्रतिमा का प्रतिपालक नहीं झेता।।
यह चतुर्थ उपासक प्रतिमा है।
पंचम प्रतिमा - पंचम प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्माभिरुचिशील होता है। वह अनेक शीलवत यावत् देशावकाशिक व्रत का सम्यक् परिपालन करता है। यहाँ चतुर्दशी आदि से संबंधित वर्णन भी पूर्वानुसार है। वह एकरात्रिक उपासक प्रतिमा - कायोत्सर्गात्मक उपासक प्रतिमा का प्रतिपालक नहीं होता। - वह स्नान नहीं करता है। दिवसभोजी होता है (रात्रि भोजन का त्याग करता है)। धोती की एक लांग खुली रखता है। दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करता है और रात्रि में परिमित अब्रह्मचर्य सेवी होता है। इस प्रकार की क्रियाओं में निरत रहता हुआ कम से कम एक, दो या तीन दिन तथा उत्कृष्टतः (अधिकतम) पांच मास तक इस प्रतिमा का परिपालन करता है।
यह पंचम प्रतिमा का स्वरूप है।
षष्ठ प्रतिमा - षष्ठ प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्माभिरुचिशील होता है यावत् वह एक रात्रिक कायोत्सर्गमय उपासक प्रतिमा का भलीभाँति परिपालन करता है। वह स्नानत्यागी, दिवाभोजी, मुकुलीकृत तथा दिन एवं रात में ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्ताहार का वह परित्यागी नहीं होता। इस प्रकार वह जघन्यतः एक, दो, तीन दिन और उत्कृष्टतः छह मास तक इस प्रतिमा की आराधना करता है।
यह छठी उपासक प्रतिमा का स्वरूप है।
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