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छट्ठा दसा - षष्ठ दशा ।
ग्यारह उपासक प्रतिमाएं सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया महावीरेणं एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं ए(इ)कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ। तंजहा०. कठिन शब्दार्थ - एक्कारस - ग्यारह, उवासगपडिमाओ - उपासक प्रतिमाएँ।
भावार्थ- आयुष्मन्! मैंने. श्रवण किया है, उन मोक्षगत प्रभु महावीर ने निरूपित किया है, तदनुसार इस संदर्भ में स्थविर भगवंतों ने ग्यारह उपासक प्रतिमाएँ आख्यात की हैं।
उन स्थविर भगवंतों ने कौन-कौन सी ग्यारह प्रतिमाओं का निरूपण किया है?
स्थविर भगवंतों ने ये (जिनका आगे वर्णन है) ग्यारह प्रतिमाएँ आख्यात की हैं। वे इस प्रकार हैं। . (प्रतिमाओं के वर्णन से पूर्व उनमें दृढ़ता, सुस्थिरता हेतु प्रारम्भ में अक्रियावादी और क्रियावादी का निरूपण हुआ है।)
अक्रियावादी-क्रियावादी - स्वरुप एवं फल _अकिरियवाई यावि भवइ, णाहियवाई, णाहियपण्णे, णाहियदिट्ठी, णो सम्मावाई, णो णितियावाई, ण संति परलोगवाई, णत्थि इहलोए, णत्थि परलोए, णत्थि माया, णत्थि पिया, णत्थि अरहंता, णत्थि चक्कवट्टी, णत्थि बलदेवा, णत्थि वासुदेवा, णत्थि णिरया, णत्थि णेरड्या, णत्थि सुकडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, णो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति, णो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला भवंति, अफले कल्लाणपावए, णो पच्चायति जीवा, णत्थि णिरयाई, णत्थि सिद्धी, से एवंवाई एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवंछंदरागमइणिविट्टे यावि भवइ॥१॥
० पासह एक्कारसमं समवायं . इस संदर्भ में समवायांग सूत्र के ग्यारहवें समवाय को देखें। -
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