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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र षष्ठ दशा
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शरीर पर अत्यंत गर्म पानी उड़ेलता है। अग्नि से शरीर को जला डालता है। बैल आदि को बांधने की रस्सी, बेंत, दही मथने की डोरी, लता आदि से शरीर के दोनों पाश्र्व - पसवाड़ों को उधेड़ डालता है। लट्ठी, हड्डी, मुष्टिका, ढेला, फूटे हुए घड़े के टुकड़े से देह को कूटता - पीटता है - पीड़ा पहुँचाता है। जिससे ऐसे मनुष्य के नजदीक रहने पर माता-पिता आदि. दुःखित होते हैं । वैसा व्यक्ति जब बाहर जाता है तो माता-पिता आदि प्रसन्न होते हैं।
पूर्व प्रतिपादित नास्तिकवादी पुरुष माता-पिता के थोड़े से अपराध के लिए दण्ड देने का विचार लिए रहता है। उसकी भारी दण्ड देने की प्रवृत्ति होती है। क्रूर स्वभाव के कारण लाठी आगे लिए रहता है। वह इस लोक में और परलोक में अपनी आत्मा का अहित करता है। ऐसे नास्तिकवादी मनुष्य औरों के लिए दुःख, शोक पहुँचाने के हेतु होते हैं। उन्हें (माता-पिता आदि को ) यथेष्ट अन्न-पानादि न देकर कंमजोर बना देते हैं, रुलाते हैं, पीटते हैं, विविध प्रकार से संतप्त करते हैं। इस प्रकार उन्हें दुःखित, शोकाकुल, दुर्बल, तर्जित, पीड़ित, परितापित, हत, बद्ध, परिक्लेशित करने से विरत नहीं होते ।
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इस प्रकार वे नास्तिकवादी स्त्री- काम भोगों में विमोहित, लोलुप, अत्यधिक आसक्त, तल्लीन बने रहते हैं यावत् चार, पाँच, छह या दस वर्ष पर्यन्त अथवा इससे कम या ज्यादा कामभोगों को भोगकर, वैरभाव संचित कर, अनेक भारी पापकर्मों का सेवन, उपार्जन करते हैं। जैसे जल में फेंका हुआ लोहे अथवा पत्थर का गोला, जल को अतिक्रांत कर नीचे जल के पैंदे में - धरतीतल पर पहुँच जाता है इसी प्रकार पूर्वोक्त कर्मों के भार से नास्तिकवादी पुरुष वज्रवत् पापों की कठोरता, क्लेशकारी कर्मों की बहुलता, कर्मपंक के आधिक्य, द्वेष बाहुल्य, दंभ तथा छल, कपट की बहुलता, आशातना के आधिक्य, अपयश बाहुल्य, अत्यधिक अप्रियता तथा त्रस प्राणियों की अत्यधिक हिंसा - इन दुष्कर्मों के कारण अत्यधिक भारी बना हुआ ( वह पुरुष ) आयुष्य पूर्ण होने पर मृत्यु को प्राप्त कर, धरणी तल को अतिक्रांत करता हुआ, नीचे के निम्न कोटिक सप्तम ( तमतमा) नारकभूमि में जा गिरता है ।
वे नरकवास मध्य में गोल हैं तथा बाहर चार कोनों से युक्त हैं। नीचे से क्षुरप्र संस्थान संस्थित - उस्तरे की धार की तरह तीक्ष्ण हैं । नित्य घोर अंधकार युक्त हैं। वहाँ ग्रह, चंद्र, सूर्य तथा नक्षत्रों का प्रकाश नहीं है। ये अत्यधिक चर्बी, मज्जा, मांस, रक्त, मवाद से अनुलिप्त, सड़े हुए मांस जैसी गंध युक्त, अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त, कबूतर के रंग जैसी अग्नि की
इसे गुजराती में "नेतर" तथा राजस्थानी में "नेतरा" कहा जाता 1
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