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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - षष्ठ दशा kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk प्राणों का हनन करता है। उसके हाथ खून से रंगे रहते हैं। वह क्रोध में प्रचण्ड बना रहता है, प्राणियों को भयभीत करता रहता है, जीव पीड़ा आदि नीच कार्य करता रहता है। बिना सोचे-विचारे अनुचित कार्यों में अपने बल को दुष्प्रयुक्त करता है। वह पापकार्य करने हेतु रिश्वत लेता है। वह ठग, छली, मायावी, प्रच्छन्नप्रवंचक तथा छलने हेतु विविध स्वांग (छलपूर्ण दुष्प्रयोग) करता है। वह दुष्टतापूर्ण स्वभावयुक्त, कृतघ्न, दुश्चरित्र, कठिनाई से नियंत्रित होने वाला, पापबहुल व्यवहारी, परदुःखानंदी, शीलवर्जित, व्रतशून्य, निर्गुण, मर्यादाशून्य, त्याग, प्रत्याख्यान, पौषध, उपवास रहित तथा साधुत्वरहित होता है। ___ वह अक्रियावादी (नास्तिकवादी) जीवन भर के लिए समस्त प्राणातिपात यावत् समस्त परिग्रह से विरत नहीं होता - त्याग, प्रत्याख्यान नहीं करता। इसी प्रकार वह सभी प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम - राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान (व्यर्थ आलाप), चुगली, दूसरे के दोषों का उद्घाटन (निन्दा), अरति - रति, माया-मृषा तथा मिथ्यादर्शनशल्य - इनसे जीवन भर के लिए अप्रतिविरत - (इनसे) विरति रहित होता है।
वह नास्तिकवादी सब प्रकार के कषायों से, दंतमार्जन, स्नान, मालिश, विलेपन (चन्दनादि का), शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध, माला, अलंकार के सेवन से जीवनभर के लिए अप्रतिविरत रहता है - उनका परित्याग प्रत्याख्यान नहीं कर पाता। सभी प्रकार के यातायात के शकट, पालखी आदि यानों - साधनों के प्रयोग से, शयन, आसन तथा भोजन, पात्र प्रयोग आदि से जीवन भर के लिए निवृत्त नहीं होता - उनका प्रत्याख्यान नहीं करता। __ वह नास्तिकवादी असमीक्षितकारी - पुण्य पाप आदि का विचार किए बिना अंधाधुंध कार्य करता है। वह अश्व, गज, गो, महिष, मेष तथा दास, दासी, पदाति (कर्मकर) आदि से यावज्जीवन प्रतिविरत नहीं होता। वह सभी प्रकार के क्रय-विक्रय, मासा, आधामासा आदि । तोल-परिमाण के व्यवहार से जीवनभर के लिए प्रतिविरत नहीं होता। ____ वह नास्तिकवादी सभी प्रकार के रजत, स्वर्ण, धन-धान्य, मणि, मौक्तिक, शंख, मूंगे इत्यादि के प्रयोग से जीवनभर के लिए विरत नहीं होता। वह सब प्रकार के मिथ्या तोलमाप आदि से जीवनभर के लिए अविरत होता है। सभी प्रकार के आरंभ-समारंभ से जीवनभर के लिए विरत नहीं होता। वह सब प्रकार के पचन-पाचन (भोजन पकाने-पकवाने) से जीवनभर के लिए विरत नहीं होता। वह सब प्रकार के (सावद्य) कर्म करने-करवाने से जीवनभर के लिए निवृत्त नहीं होता। सब प्रकार के कूटने, पीटने, तर्जित करने, ताड़ित करने,
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