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शिष्य के प्रति आचार्य का दायित्व
३३ kakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakkakt चुयधम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, तस्सेव धम्मस्स हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए अणुगामियत्ताए अब्भुढेत्ता भवइ।से तं विक्खेवणाविणए॥१२॥
से किं तं दोसणिग्घायणाविणए? दोसणिग्घायणाविणए चउव्विहे पण्णत्ते।तंजहाकुद्धस्स कोहविणएत्ता भवइ, दुटुस्स दोसं णिगिण्हित्ता भवइ, कंखियस्स कंखं छिंदित्ता भवइ, आयासुप्पणिहिए यावि भवइ। से तं दोसणिग्घायणाविणए ॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - णिरणत्तं - ऋणमुक्तता - उऋणता, विक्खेवणाविणएणं - विक्षेपणाविनय - सम्यक्त्व आदि विशिष्ट गुणों में स्थापित करना, दोसणिग्घायणविणएणंदोषनिर्घातनविनय - मिथ्यात्व आदि दोषों का निर्घातन - उच्छेदन करना, संजमसमायारी - संयमसमाचारी - संयमानुरूप आचरण, अदिट्ठधम्मं - अदृष्टधर्म - धर्म के यथार्थ ज्ञान से रहित, दिट्ठपुव्वगत्ताए - दृष्टपूर्वकतया - धर्म विषयक सद्बोध द्वारा, विणएइत्ता - विनेताले जाने वाला, साहम्मियत्ताए - साधर्मिकता से, चुय-धम्माओ - धर्म से च्युत (गिरे हुए), ठावइत्ता - स्थापयिता - स्थापित कर, हियाए - हितार्थ, अणुगामियत्ताए - अनुयायी होकर, अब्भुटेत्ता - अभ्युत्थित होकर - आराधक बनकर, कुद्धस्स - क्रोधयुक्त होने पर, दुटुस्स - दोषयुक्त का, कंखियस्स - कांक्षितस्य - परमत - आकर्षण का निवारण, कंखंकांक्षा - इच्छा (भावना), छिंदित्ता - छेत्ता - निवारणकर्ता, आयासुप्पणिहिए - आत्मसुप्रणिहित - संयतचेता - आत्मस्थैर्यवान। - भावार्थ - आचार्य अपने अन्तेवासियों - शिष्यों को चार प्रकार की विनयप्रतिपत्ति - विनयमूलक आचारविद्या सिखाकर, प्राप्त करवाकर अपने ऋण से मुक्त हो जाते हैं। . वह चतुर्विध विनयप्रतिपत्ति इस प्रकार है - १. आचार विनय २. श्रुत विनय ३. विक्षेपणा विनय एवं ४. दोषनिर्घातन विनय। आचार विनय कितने प्रकार का बतलाया गया है? आचार विनय चार प्रकार का बतलाया गया है -
१. संयमसमाचारी २. तपसमाचारी ३. गणसमाचारी ४. एकाकीविहार समाचारी सिखलाना चतुर्विद विनय समाचारी है।
यह आचार विनय का स्वरूप है। श्रुतविनय कितने प्रकार का है?
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