________________
चित्तसमाधि के दश स्थान
मूत्र-कफ(खंखार)-मालिन्य- शिंघाण (नासामल) आदि की परिष्ठापना, गुत्तबंभयारीणं गुप्त ब्रह्मचारी, आयपरक्कमाणं- आत्मपराक्रमी आत्मकल्याण हेतु, पक्खियपोसहिएसुपाक्षिक - पौषधों में, सुसमाहिपत्ताणं- सुसमाधि प्राप्त, झियायमाणाणं ध्यान करते हुए, असमुप्पण्णपुव्वा पूर्व में अनुत्पन्न, समुप्पज्जेज्जा - समुत्पद्यन्ते - उत्पन्न होते हैं, जाणित्तए - जान लेता है, सुमिणदंसणे- स्वप्न दर्शन होने पर, अहातच्चं - यथातथ्य, सण्णिजाइसरणेणं - संज्ञी जातिस्मरण द्वारा, सण्णिणाणं- संज्ञी - ज्ञान द्वारा, देवदंसणे - देवदर्शन होने पर, देविड्डि - देव ऋद्धि, देवजुई - देवद्युति, देवाणुभावं - देव प्रभाव, ओहिणा - अवधिज्ञान द्वारा, लोयं - लोक को, ओहिदंसणे - अवधिदर्शन प्राप्त होने पर, मणपज्जवणाणे - मनः पर्यवज्ञान होने पर, मणुस्सक्खित्तेसु - मनुष्य क्षेत्र में, सण्णीणं - संज्ञी, पज्जत्तगाणं - पर्याप्तियुक्त, केवलकप्पं - केवलकल्प, लोयालोयं लोक एवं अलोक को, सव्वदुक्खपहीणाए - सब दुःखों से रहित हो जाने से, ओयं - ओज आत्मतेजोमय (राग-द्वेष रहित), झाणं - ध्यान, अविमणो अविमनस्क - स्थिरता रहित, ठिओ - स्थित, णिव्वाणमभिगच्छइ - निर्वाण प्राप्त करता है, भुज्जो - बार-बार, जायइउत्पन्न होता है, अप्पणो अपना, सण्णिणाणेणं - संज्ञी ज्ञान द्वारा, खिप्पं- क्षिप्र शीघ्रता पूर्वक, पासेइ - पश्यति - देखता है, संवुडे - संवर युक्त, ओहं - ओघ प्रवाह (संसार सागर), तरइ - पार कर जाता है, दुक्खदो- दुःख से, य छूट जाता है, पंताई अन्त-प्रान्त विविक्ति - एकान्त, अप्पाहारस्स
च - और, विमुच्चड़
-
बचा खुचा, भयमाणस्स
खाने वाले, विवित्तं
अल्पाहार, दंतस्स - इन्द्रियनिग्रही, ताइणो- छह काय जीवों के रक्षक, सव्वकामविरत्तस्स सभी कामनाओं से पृथक्भूत, भयभेरवं - अत्यधिक भयावह परीषह सहिष्णु, संजयस्स - संयति का, अवहट्टुलेस्सस्स - (अशुभ) लेश्याओं से रहित, परिसुज्झइ - परिशुद्ध होता है, उड्डुं - ऊर्ध्वलोक, अहे - अधोलोक में, तिरियं - तिर्यक्लोक में, समणुपस्सइ सब-कुछ साक्षात् देखता है, सुसमाहियलेस्सस्स - सुसमाहितनिरवद्य - प्रशस्तलेश्यायुक्त, अवितक्कस्स- अवितर्कस्य संकल्प-विकल्प रहित, भिक्खुणोभिक्षोपजीवी, विप्पमुक्कस्स छूटे हुए, आया आत्मा, पज्जवे - पर्यायों को, मत्थय मस्तक पर सूईए - सूई द्वारा, हंताए छेदन किए जाने पर, हम्मंति - विनष्ट होते हैं, सेणावइंमि सेनापति के, णिहए - नष्ट हो जाने पर, पणस्सइ - विनष्ट हो जाते हैं.
-
Jain Education International
-
-
-
-
For Personal & Private Use Only
-
-
४३
-
www.jainelibrary.org