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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk ___संघ की सब प्रकार की देखभाल का मुख्य दायित्व आचार्य पर रहता है। संघ में उनका आदेश अन्तिम और सर्वमान्य होता है। ___गणी या आचार्य की आठ संपदाओं का यहाँ जो वर्णन हुआ है, वह आचार्य के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं का द्योतक है, जो आत्म साधना के साथ-साथ धर्म और शासन को उजागर करने में प्रेरक एवं सहायक होती हैं। संपदा शब्द सामान्यतः धन संपत्ति के लिए प्रयुक्त होता है। श्रमण तो ज्यों ही दीक्षा स्वीकार करते हैं, सभी प्रकार की भौतिक संपदाओं का प्रत्याख्यान या परित्याग कर देते हैं। वे पूर्णतः अपरिग्रही होते हैं। सांसारिक धन-दौलत उनके लिए तृण-तुल्य होता है। सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही उनका धन, वैभव या ऐश्वर्य है। आचार्य की आठ संपदाओं में इन्हीं के आधार पर धर्मोद्योत और अध्यात्मप्रभावना का भाव समाविष्ट है। जिन-जिन उपादानों, कारणों से, विशेषताओं से यह सधे, उन्हीं का इनमें विशेष रूप से निरूपण हुआ है। संतों, आचार्यों की तो यही विभूति, समृद्धि या संपत्ति है। ____ गणी या आचार्य की अष्टविध संपदाओं में पहली आचार संपदा है। साधु जीवन में आचार का सर्वोपरि स्थान है। आचार साधुत्व का मूल गुण है। आचार पूर्वक ही विद्या, वक्तृता आदि गुण शोभित होते हैं। “आयार मूलो धम्मो" "आचारः प्रथमो धर्मः" इत्यादि उक्तियाँ इसी आशय की द्योतक हैं। “आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः" अर्थात् आचार हीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अन्यान्य शास्त्रों में भी ऐसे कथन प्राप्त होते हैं।
आचार्य शब्द की व्याख्या करते हुए कहा गया है :आचिनोति च शास्त्रार्थमाचारे स्थापयत्यपि। स्वयमाचरते यस्मादाचार्यस्तेन कथ्यते॥
अर्थात् जो शास्त्रों के अर्थ का आचयन - संचयन - संग्रहण करते हैं, स्वयं आचार का पालन करते हैं, दूसरों को आचार में स्थापित करते हैं, (इन कारणों से) वे आचार्य कहे जाते हैं। - आचार्य शब्द के मूल में मुख्यतः आचार शब्द है।
प्रस्तुत सूत्र में आचार संपदा के जो चार भेद निरूपित हुए हैं, वे प्रधानतया आचार्य की उत्कृष्ट आचार साधना के सूचक हैं। तदनुसार संयमविषयक क्रियाओं में सदैव ध्रुवयोग युक्त रहना - मानसिक, वाचिक, कायिक रूप में कृत, कारित और अनुमोदित पूर्वक आचार विधाओं का अविचल रूप में परिपालन करना अभीप्सित है। आचार्य अपने उच्च पद आदि
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