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जो अपने पास नौका न हो अथवा नौकाका मल्लाह उत्तम न हो तो समुद्र पार कैसे कर सकते हैं ?" यह कह द्रव्य साथ लेकर सोमश्रेष्ठी चुपचाप वहांसे चला गया । सत्य है पुरुष स्त्रीके लिये दुष्कर कार्य भी करसकते हैं, देखो ! क्या पांडवों द्रोपदी के लिये समुद्र पार नहीं किया था ?
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सोमटीके विदेश चले जानेके बाद श्रीदत्तको एक कन्या उत्पन्न हुई, अवसर पाकर दुदैव भी अपना जोर चलाता है । श्रीदत्तने मनमें विचार किया कि, “धिक्कार है ! मुझे मुझपर कितने दुःख आ पडे. एक तो मातापिताका वियोग हुआ, द्रव्यकी हानि हुई, राजा द्वेषी हुआ और तिस पर भी कन्या की उत्पत्ति हुई । दूसरेको दुःखमें डालकर संतोष पाने वाला दुदैव अभी भी मालूम नहीं क्या करेगा ?" इस भांति चिन्ता करते दस दिन व्यतीत होगये । तत्पश्चात् उसके एक मित्र शंखदत्तने उसे कहा कि, "हे श्रीदत्त ! दुःख न कर । चलो, हम द्रव्य उपाजनके हेतु समुद्र यात्रा करें, उसमें जो लाभ होगा वह हम दोनों समान भागसे बांट लेंगे "
श्रीदत्तने यह बात स्वीकार की और अपनी स्त्री तथा कन्याको एक सम्बन्धी के यहां रख कर शंखदत्त के साथ सिंहल - द्वीप आकर बहुत वर्ष तक रहा। पश्चात् अधिक लाभ की इच्छा से कटाह द्वीप में जाकर सुख पूर्वक दो वर्ष तक रहा । क्रमशः दोनोंने आठ करोड द्रव्य उपार्जन किया । देवकी अनुकूलता