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भीतर घुस गई | तेरा पिता स्त्रीप्राप्तिकी उत्सुकता से आगे जा रहा था । वह एक तीक्ष्णवाणके कपाल में लगने से मृत्युको प्राप्त हो गया । सत्य है, मनुष्य कुछ सोचता है पर दैव कुछ करता है । स्त्रीको छुड़ा कर लानेका प्रयत्न ही उसकी मृत्युका कारण हो गया, कहावत है कि हाथके मनमें कुछ और था, सिंहके मनमें और, सर्पके मन में और तथा शियालके मनमें भी और, परन्तु दैवके मन में तो सबसे ही निराला था । पल्लीपतिकी सेनाके नगर में प्रवेश करते ही राजा सूरकान्त बहुत घबराया तथा वहांसे कहीं भाग गया । सत्य है पापियोंकी जय कहांसे हो ? पल्लीपतिकी सेनाने तुरन्त हरिणीकी भांति धूजती हुई सोमश्री को पकड़ ली। पश्चात् नगर लूटकर सब भिल्ल सैनिक अपने २ स्थानको जाने लगे । इस भगदौड में मौका पाकर सोमश्री भी वहांसे भाग निकली, तथा वनमें भटकती हुई उसने एक वृक्षका फल खाया जिससे उसका शरीर तो किंचितमात्र टिंगना होगया, परन्तु शरीरकान्ति पहिलेकी अपेक्षा बहुत ही दिव्य तथा सुन्दर होगई । मणि, मंत्र तथा औषधियोंका प्रभाव ही अद्भुत है। मार्गमें जाते हुए कुछ वकिलोगों को इसे देखकर बडा ही आश्चर्य हुआ । वे इससे पूछने लगे कि, " हे सुन्दरी ! क्या तू कोई देवांगना, नाग कुमारी, वनदेवी, स्थलदेवी अथवा जलदेवी है? हमको विश्वास है कि तू मानवी तो कदापि नहीं हैं। सोमश्रीने गदगद