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बहुत मना किया, तो भी वह नियाणाकर अग्रिमें पडा और मृत्युको प्राप्त हो, पंचशैलद्वीपका अधिपति व्यन्तर देवता हुआ | नागिलको उससे वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह दीक्षा ले, काल करके बारहवें अच्युतदेवलोक में देवता हुआ ।
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एक समय नन्दीश्वरद्वीपमें जानेवाले देवताओंकी आज्ञासे हासा - प्रहासाने कुमारनंदी के जीव व्यंतरको कहा कि- " तू पडह ग्रहणकर वह अहंकारसे हुंकार करने लगा, इतने ही में पड आकर उसके गलेमें लटक गया। उसने बहुत प्रयत्न किया, किन्तु उसके गलेमेंसे पडह अलग नहीं हुआ । उस समय अबधिज्ञान से यह बात जानकर नागिल देवता वहां आया । जैसे सूर्य के तेजसे उल्लू पक्षी भागता है, उसी प्रकार उक्त देवताके तेजसे कुमारनंदी व्यन्तर भागने लगा । तब नागिलदेवताने अपना तेज समेटकर कहा कि, " तू मुझे पहचानता है ? " उसने कहा कि, " इन्द्रादि देवताओं को कौन नहीं पहिचानता है ? " तब नागिलदेवताने पूर्वभव के श्रावक रूप से पूर्वभव कह कर व्यन्तरको प्रतिबोधित किया। तब व्यन्तरने पूछा"अब मैं क्या करूं ? " देवताने उत्तर दिया “अब तू गृहस्थावस्था में कार्योत्सर्ग किये हुए भावयति
प्रतिमा बनवा, इससे तुझे आगामीभवमें
श्रीमहावीरस्वामीकी बोधिलाभ होगा । " श्रीमहावीरस्वामीको
देवताका यह वचन वचन सुन
देख नमस्कार किया और हिमवंतपर्वतसे लाये हुए गौशीर्षचंदन से
सुन उसने