Book Title: Shraddh Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Bandhu Printing Press

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Page 792
________________ (७६९) नुसार इस लोकमें करवाते हैं, वे लोग मनुष्यलोकमें तथा देवलोकमें परम मुख पाते हैं. जिनबिंब बनवानेवाले लोगोंको दारिद्य, दुर्भाग्य, निंद्य जाति, निंद्य शरीर, दुर्गति, दुर्बुद्धि, अप. मान, रोग और शोक नहीं भोगना पडता. वास्तुशास्त्रमें कही हुई विधि अनुसार तैयार की हुई, शुभलक्षणवाली प्रतिमाएं इसलोकमें भी उदयआदि गुण प्रकट करती हैं. कहा है कि-- अन्यायोपार्जित धनसे कराई हुई, परवस्तुके दलसे कराई हुई, तथा कम अथवा अधिक अंगवाली प्रतिमा अपनी तथा दूसरेकी उन्नतिका नाश करती है. जिन मूलनायकजीके मुख, नासिका, नेत्र, नाभि अथवा कमर इनमें किसी भी अवयवका भंग हुआ हो, उनका त्याग करना. परन्तु जिसके आभूषण, वस्त्र, परिवार, लंछन अथवा आयुध इनका भंग हो, वह प्रतिमा पूजनेमें कोई बाधा नहीं. जो जिनबिंब सौवर्षसे अधिक प्राचीन होवे तथा उत्तमपुरुष द्वारा प्रतिष्ठा किया हुआ होवे, वे बिंब अंगहीन हो तो भी पूजनीय है. कारण कि, वह लक्षणहीन नहीं होता. प्रतिमाओंके परिवारमें अनेक जातिकी शिलाओंका मिश्रण हो वह शुभ नहीं. इसी तरह दो, चार, छः इत्यादि समअंगुलप्रमाणवाली प्रतिमा कदापि शुभकारी नहीं होती. एकअंगुलसे लेकर ग्यारहअंगुलप्रमाणकी प्रतिमा घरमें पूजने योग्य है. ग्यारहअंगुलसे आधिकप्रमाणकी प्रतिमा जिनमंदिरमें पूजनी चाहिये, एसा पूर्वाचार्य

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