Book Title: Shraddh Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Bandhu Printing Press

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Page 794
________________ (७७१) आदि वस्तुओंके दान से क्रमशः क्षण भर, एक प्रहर, एक दिवस, एक मास, छः मास, एक वर्ष और यावज्जीव तक भोगा जाय इतना पुण्य होता है; परन्तु जिनमंदिर, जिनप्रतिमाआदि करवानेसे तो उसके दर्शनआदिसे प्राप्त पुण्य अनंत कालतक भोगा जाता है। इसीलिये इस चौबीसीमें पूर्वकाल में भरतचक्रवर्तीने शत्रुजय पर्वतपर रत्नमय चतुर्मुखसे विराजमान, चौरासीमंडपोंसे सुशोभित, डेढ माइल ऊंचा, साढेचार माइल लंबा जिनमंदिर जहां पुंडरीकस्वामी पांच करोड मुनियों सहित ज्ञान और निर्वाणको प्राप्त हुए थे, वहां बनवाया । इसीतरह बाहुबलि तथा मरुदेवीआदिके शिखरपर, गिरनारऊपर, आबूपर, वैभारपर्वतपर, सम्मेतशिखरपर, तथा अष्टापदआदिमें भी भरतचक्रवर्तीने बहुतसे जिनप्रासाद, और पांचसौधनुष्यआदि प्रमाणकी तथा सुवर्णआदिकी प्रतिमाएं भी बनवाई। दंडवीर्य, सगरचक्रवर्तीआदि राजाओंने उन मंदिरों तथा प्रतिमाओंका उद्धार भी कराया । हरिषेणचक्रवर्तीने जिनमंदिरसे पृथ्वीको सुशोभित कि । संप्रतिराजाने भी सौ वर्ष आयुष्यके सर्वदिवसोंकी शुद्धिके निमित छत्तीस हजार नये तथा शेष जीर्णोद्धार मिलकर सवा लक्ष जिनमंदिर बनवाये । सुवर्णआदिकी सवाकरोड प्रतिमाएं बनवाई । आमराजाने गोवर्धन पर्वतपर साढेतीनकरोड सुवर्णमुद्राएं खर्चकर सातहाथ

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