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(७९१) विस्तारार्थः--उपरोक्त दिनकृत्यआदि छः द्वारवाली श्रावकधर्मविधिको जो श्रावक निरन्तर सम्यकाकारसे पाले, वे वर्तमानभवमें रहकर सुख पाते हैं, और परलोकमें सात आठ भवके अन्दर परम्परासे मुक्तिसुख शीघ्र व अवश्य पाते हैं.
इति श्रीरत्नेशखरसूरिविरचितश्राद्धविधिकौमुदीकी हिंदिभाषाका जन्मकृत्यप्रकाशनामक
षष्ठः प्रकाशः संपूर्णः इति श्राद्धविधिका हिंदीभाषांतर समाप्त.