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लगातार आठ दिन तक एक सरीखी पूजा करना, तथा सर्वप्राणियोंको यथाशक्ति दान देना चाहिये । आठवां द्वार--
पुत्र, पुत्री, भाई, भतीजा, स्वजन, मित्र, सेवक आदिकी दीक्षाका उत्सव बडी सजधजसे करना चाहिये । कहा है किभरतचक्रवतीके पांचसौ पुत्र और सातसौ पौत्रोंने उस समवसरणमें साथ ही दीक्षा ग्रहण की। श्रीकृष्ण तथा चेटकराजाने अपनी संततिका विवाह करनेका नियम किया था, तथा अपनी पुत्रीआदिको तथा थावच्चापुत्रआदिको उत्सवके साथ दक्षिा दिलाई थी सो प्रसिद्ध है। दीक्षा दिलाने में बहुत पुण्य है। कहा है कि- जिसके कुलमें चारित्रधारी उत्तम पुत्र होता है, वे माता, पिता स्वजनवर्ग बडे पुण्यशाली और धन्य है । लौकिकशास्त्रमें भी कहा है कि- जबतक कुलमें कोई पुत्र पचित्रसंन्यासी नहीं होता, तबतक पिंडकी इच्छा करनेवाले पित संसार भ्रमण करते हैं। नवमा द्वार
पदस्थापना याने गणि, वाचकाचार्य, वाचनाचार्य, दीक्षा लिये हुए अपने पुत्रादि तथा अन्य भी जो योग्य होवें, उनकी पदस्थापना शासनकी उन्नतिआदिके लिये महोत्सवके साथ कराना । सुनते हैं कि, अरिहंतके प्रथम समवसरणमें इंद्र स्वयं