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सम्यक्प्रकारसे उनका आगत स्वागत करना । भोजन वस्त्रआदि देकर उनका सर्वप्रकारसे सत्कार करना। कैदियोंको छुडवाना । अहिंसा प्रवर्ताना । किसीको भी बाधा न होवे ऐसी दानशाला चलाना । सुतारआदिका सत्कार करना। बहुत धूमधामके साथ संगीतआदि अद्भुत उत्सव करना । अट्ठारह स्नात्र करना । इत्यादिक विशेष प्रतिष्ठाकल्पआदि ग्रंथों में देखो
प्रतिष्ठामें स्नात्रके अवसरपर भगवानकी जन्मावस्थाका चितवन करना, तथा फल, नैवेद्य, पुष्प, विलेपन, संगीत इत्यादि उपचारके समय कौमार्यआदि चढती अवस्थाका चितवन करना । छमस्थावस्थाके सूचक वस्त्रादिकसे शरीरका आच्छादन करना इत्यादि. उपचारके समय भगवानकी शुद्ध चारित्रावस्थाका चितवन करना. अंजनशलाकासे नेत्रका उघाडना करते समय भगवानकी केवली अवस्थाका चितवन करना । तथा पूजामें सर्वप्रकारके बडे २ उपचार करनेके समय समवसरण में रही हुई भगवानकी अवस्थाका चितवन करना । श्राद्धसामाचारीवृत्ति में कहा है कि- प्रतिष्ठा करनेके अनंतर बारह मास तक प्रतिमास उस दिन उत्तमप्रकारसे स्नात्रआदि करना । वर्ष पूरा होनेपर अट्ठाई उत्सव करना, और आयुष्यकी ग्रंथि बांधना, तथा उत्तरोत्तर विशेषपूजा करना । वर्षगांठ के दिन साधर्मिवात्सल्य तथा संघपूजाआदि शक्त्यनुसार करना. प्रतिष्ठापोडशकमें तो इस प्रकार कहा है कि- भगवानकी