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युक्त प्रतिमा प्रकट हुई, और जैनधर्मकी बहुत महिमा हुई । रानी उस प्रतिमाको अपने अंतःपुर में लेगई, और अपने नये बनवाये हुए चैत्य में स्थापनकर नित्य त्रिकालपूजा करने लगी.
एक समय रानीके आग्रहसे राजा वीणा बजा रहा था और रानी भगवान् के सन्मुख नृत्य करती थी. इतनेमें राजाको रानीका शरीर शिरविहीन नजर आया, जिससे वह घबरा गया, और वीणा बजानेकी कंबिका उसके हाथमेंसे नीचे गिर पडी. नृत्य में रसभंग होनेसे रानी कुपित हुई, तब राजाने यथार्थबात कही. एक समय दासीका लाया हुआ वस्त्र श्वेत होते हुए भी प्रभावतीने रक्तवर्ण देखा, और क्रोध कर दासी पर दर्पण फेंक मारा, जिससे वह मर गई. पश्चात् वही वस्त्र प्रभावतीने पुनः देखा तो श्वेत नजर आया, जिससे उसने निश्चय किया कि अब मेरा आयुष्य थोडा ही रह गया है, और चेडीरूप स्त्रीकी हत्या से पहिले प्राणातिपातविरमणव्रतका भी भंग होगया है, ऐसे वैराग्य पा कर दीक्षा लेने की आज्ञा मांगने के लिये राजाके पास गई, राजाने 'देवताके भवमें जाके तूने मुझे सम्यक्प्रकार से धर्ममें प्रवृत्त करना ' यह कह कर आज्ञा दे दी. तदनन्तर प्रभावतीने उस प्रतिमाकी पूजाके निमित्त देवदत्तानामकी कुब्जाको रख कर स्वयं बड़े समारोहसे दीक्षा ग्रहण करी, और अनशनसे काल करके सौधर्मदेवलोक में देवता हुई, उस देवताने बहुत ही प्रतिबोध किया, परन्तु राजाउदायनने तापसकी भक्ति नहीं छोडी दृष्टिराग