Book Title: Shraddh Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Bandhu Printing Press

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Page 788
________________ ( ७६५ ) प्रद्योतक बंदी कर उसके कपाल पर "मेरी दासीका पति" ऐसी छाप लगाई. पश्चात् वह चंडप्रद्योत सहित प्रतिमा लेने के लिये विदिशानगरीको गया. प्रतिमाका उद्धार करने के लिये बहुत प्रयत्न किया तथापि वह स्थानकसे किंचितमात्र भीन डिगी. और अधिठात्री देवी कहने लगी कि "मैं न आऊंगी, क्योंकि वीतभयपट्टण में लकी वृष्टि होगी, इसीलिये मैं नहीं आती." यह सुन उदायन राजा पीछा फिरा. मार्ग में चातुर्मास ( वर्षाकाल ) आया, तब एक जगह पडाव करके सेनाके साथ रहा. संवत्सरी पर्वके दिन राजाने उपवास किया. रसोइयेने चंडप्रद्योतको पूछा कि, "आज हमारे महाराजाने पर्युषणाका उपवास किया है इसलिये आपके वास्ते क्या रसोई करूं?" चंडप्रद्योतके मनमें 'यह कदाचित् अन्नमें मुझे विष देगा' यह भय उत्पन्न हुआ, जिससे उसने कहा कि, " तूने ठीक याद कराई, मेरे भी उपवास है. मेरे मातापिता श्रावक थे." यह ज्ञात होने पर उदायनने कहा कि, "इसका श्रावकपना तो जान लिया ! तथापि यह ऐसा कहता है, तो वह नाममात्र से भी मेरा साधर्मी होगया, इसलिये वह बंधन में हो तब तक मेरा संवत्सरप्रतिक्रमण किस प्रकार शुद्ध हो सकता है ?" यह कह उसने चंडप्रद्योतको बंधनमुक्त कर दिया, खमाया और कपाल पर लेख छिपानेके लिये रत्नमणिका पट्ट बांधकर उसे अवंती देश दिया. उदयनराजाकी धार्मिकता तथा सन्तोषआदिकी जितनी प्रशंसा की जाय, उतनीही थोडी है. अस्तु.

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