________________
(५४०) रत्नसारको बताये. फल, फूलकी समृद्धिसे नतमस्तक हुए बहुत से अपरिचित वृक्षोंका नाम ले २ कर उसने पहिचान कराई. पश्चात् मार्गश्रम दूर करनेके लिये रत्नसारकुमारने एक छोटे सरोवरमें स्नान किया. तदनन्तर तापसकुमारने उसके सन्मुख निम्नाङ्कित फलादि लाकर रखे-प्रत्यक्ष अमृतके समान कुछ पकी कुछ कच्ची द्राक्ष, व्रतधारी लोग भी जिनको देखकर भक्षण करनेके लिये अधीर हो जाय ऐसे पके हुए मनोहर आम्रफल, नारियल, केले, सुधाकरीके फल, खजूर, खिरनी, श्रीरामलकीके फल, स्निग्धबीजवाले हारबंध चारोलाके फल, सुन्दर बीजफल, मधुर बिजोरे, नारंगियां सर्वोत्कृष्ट दाडिम, पके हुए साकर नींबू, जामुन, बेर, गोंदे, पीलू, फणस, सिंघाडे, सकरटेटी, पक्के तथा कच्चे बालुक फल, द्राक्षादिक सरस शरबत, नारियलका तथा स्वच्छ सरोवरका जल, शाकके स्थानमें कच्चा अम्लवेतस, इमली, निम्बू आदि; स्वादिमकी जगह कुछ हरी कुछ मूकी हारबंध सुपारियां, चौडे २ निर्मल पान, इलायची, लवंग, लबलीफल, जायफल आदि, तथा भोग सुखके निमित्त शत पत्र ( कमलविशेष ). बकुल, चंपक, केतकी, मालती, मोगरा, कुंद, मुचकुंद, भांति २ के सुगन्धित कमल हर्षक, उत्पन्न हुए कर्पूरके रजःकर्ण, कस्तूरीआदि उपरोक्त वस्तुएं सजा कर रखी. रत्नसारकुमारने तापसकुमारकी की हुई भक्तीकी रचना अंगीकार करनेके हेतु. उन वस्तुओं पर आदरसहित एक दृष्टि