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इसी प्रकार दुर्वा, वृक्षांकुर, डाभके गुच्छेआदि जहां बहुत हों तथा सुन्दर रंग व उत्तम गंधयुक्त माटी, मधुर जल तथा निधान आदि जिसमें होवें, ऐसा स्थान होना चाहिये, कहा है कि-- उष्णकाल में ठंडे स्पर्शवाली तथा शीतकाल में गरम स्पर्शवाली तथा वर्षाऋतु में समशीतोष्ण स्पर्शवाली भूमि सबको सुखकारी है. एक हाथ गहरी भूमि खोदकर पीछी उसी माटीसे उसे पूर देना चाहिये. जो माटी बढ जावे तो श्रेष्ठ, बराबर होवे तो मध्यम और घट जावे तो उस भूमिको अधम जानो. जिस भूमि गड्डा खोदकर जल भरा होवे तो वह जल सौ पग जावें तब तक उतना ही रहे तो वह भूमि उत्तम है, एक अंगुल कम होजावे तो मध्यम और इससे अधिक कम होजावे तो अधम जानो, अथवा जिस भूमिके गड्ढे में रखे हुए पुष्प दूसरे दिन वैसे ही रहें तो उत्तम, आधे सूख जावें तो मध्यम और सब सूख जावें तो उस भूमिको अधम जानो जिस भूमिमें बोया हुआ डांगर आदि धान्य तीनदिनमें ऊग जावे वह श्रेष्ठ, पांचदिनमें ऊगे वह मध्यम और सातदिन में ऊगे उस भूमिको अधम जानो भूमि वल्मीकवाली हो तो व्याधि, पोली होय तो दारिद्र्य, फटी हुई हो तो मरण, और शल्यवाली हो तो दुःख देती है. इसलिये शल्यकी बहुतही प्रयत्नसे तपास करना, मनुष्य की हड्डीआदि शल्य निकले तो उससे मनुष्यहीकी हानि होती है, गदहे - का शल्य निकले तो राजादिकसे भय उत्पन्न होता है, कुत्तेका