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अथवा श्रेष्ठपाषाणादिमय विशाल जिनप्रासाद बनवाना इतनी शक्ति न होवे तो श्रेष्ठ काष्ठ ईंटों आदिसे जिनमंदिर बनवाना. यह करने की भी शक्ति न होवे तो जिनप्रतिमा के लिये न्यायोपार्जित धनसे घास की झोपडी तो भी बनवाना कहा है किन्यायोपार्जित धनका स्वामी, बुद्धिमान्, शुभपरिणामी और सदाचारी श्रावक गुरुकी आज्ञासे जिनमंदिर बनवानेका अधिकारी होता है. प्रत्येकजीवने प्रायः अनादिभव में अनन्तों जिनमंदिर और अनन्त जिनप्रतिमाएं बनवाई; परन्तु उस कृत्य में शुभ परिणाम न होनेके कारण उनको समकितका लवलेश भी लाभ नहीं मिला. जिसने जिनमंदिर तथा जिनप्रतिमाएं नहीं बनवाई, साधुओं को नहीं पूजे और दुर्धरव्रतको अंगीकार भी नहीं किया, उन्होंने अपना मनुष्यभव वृथा गुमाया यदि पुरुष जिनप्रतिमाके लिये घासकी एक झोंपडी भी बनाना है, तथा परमगुरुको भक्ति से एक फूल भी अर्पण करता है, तो उसके पुण्यकी गिन्ती ही नहीं हो सकती. और जो पुण्यशाली पुरुष शुभपरिणामसे विशाल, मजबूत और नक्कुर पत्थरका जिनमंदिर बनवाता है, उसकी तो बात ही क्या है ? वे अतिधन्य पुरुष तो परलोक में विमानवासी देवता होते हैं. जिनमंदिर बनवाने की विधि तो पवित्र भूमि तथा पवित्र दल ( पत्थर - काष्ठआदि ) मजदूर आदिको न ठगना, मुख्यकारीगरका
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