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अर्थ, कामकी पुष्टि करके यह भव तथा परभव सफल किया; और जिन्होंने देहली नहीं छोडी, उन लोगोंने बंदीगृहमें पडना आदि उपद्रव पाकर अपने दोनों भव पानीमें गुमाये. नगरका विनाश होने पर स्थान त्यागनेके विषयमें क्षितिप्रतिष्ठितपुर, चणकपुर, ऋषभपुरआदिके उदाहरण विद्यमान हैं. सिद्धांतमें कहा है कि क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर, राजगृह, चम्पा, पाटलीपुत्र इत्यादि एकही राजाकी नइ नइ राजधानीके नाम है।
यहां तक रहनेका स्थान याने नगर, ग्राम आदिका विचार किया. घर भी रहनेका स्थान कहलाता है अतएव अब उसका विचार करना चाहिये. अच्छे मनुष्योंने अपना घर वहां बनाना जहां कि अच्छेही मनुष्योंका पडौस हो. बिलकुल एकांतमें नहीं बनाना. शास्त्रोक्त विधिक अनुसार परिमितद्वारआदि गुण जिस घरमें होवे, वह घर धर्म, अर्थ, और कामका साधनेवाला होनेसे रहनेको उचित है. खराब पडौसियोंको शास्त्रमें निषिद्ध किया है. यथाः- वेश्या, तिर्यंचयोनिके प्राणी, कोतवाल, बौद्धआदिके साधु, ब्राह्मण, स्मशान, बाघरी, शिकारी, कारागृहका अधिकारी ( जेलर ), डाकू, भील, कहार, जुगारी, चोर, नट, नर्तक, भट्ट, भांड और कुकर्म करनेवाले इतने लोगोका पडौस सर्वथा त्याज्य है. तथा इनके साथ मित्रता भी न करना चाहिये. वैसेही देवमंदिरके