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लाख द्रव्य खर्च करके महापूजा करी, और मनवांछित लाभ होनेसे बारह वर्ष बाद पीछा आया तब हर्षसे एक करोड रुपये खर्च कर जिनमंदिर में महापूजाआदि उत्सव किया । . इसी भांति पुस्तकादिस्थित श्रुतज्ञानकी कपूरआदि वस्तुसे सामान्य पूजा तो चाहे जभी की जा सकती है । मूल्यवान वस्खआदिसे विशेष पूजा तो प्रतिमास शुक्लापंचमीके दिन श्रावकने करना चाहिये । यह करनेकी शक्ति न होवे तो जघन्यसे वर्षमें एक बार तो करना ही चाहिये । यह बात जन्मकृत्यमें आये हुए ज्ञानभक्तिद्वारमें विस्तारसे कही जावेगी । इसी प्रकार नवकार, आवश्यकसूत्र, उपदेशमाला, उत्तराध्ययन इत्यादि ज्ञान दर्शन और विविध प्रकारके तप संबंधी उजमणेमें जघन्यसे एक उजमणा तो प्रतिवर्ष यथाविधि अवश्य करना चाहिये. कहा है कि- मनुष्योंको उजमणा करनेसे लक्ष्मी श्रेष्ठ स्थानमें प्राप्त होती है, तपस्या भी सफल होती है और निरन्तर शुभध्यान, समकितका लाभ, जिनेश्वर भगवान्की भक्ति तथा जिनशासनकी शोभा होती है । तपस्या पूरी होने पर उजमणा करना वह नये बनाये हुए जिनमंदिर पर कलश चढानेके समान, चांवलसे भरे हुए पात्र ऊपर फल डालनेके समान अथवा भोजन कर लेने पर तांबूल देनेके समान है. शास्त्रोक्त विधिके अनुसार लाख अथवा करोडबार नवकारकी गणनाकर जिनमंदिरमें स्नात्रोत्सव,