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(७२४) तथा परभव में कितना दुःख होता है, वह जाननेवाले ऐसे आठ गुणवाले गुरु आलोयणा देने में समर्थ हैं.
आलोअणापरिणओ, सम्म संपढिओ गुरुसगासे ॥ जइ अंतरावि कालं, करिज्ज आराहओ तहवि ॥५॥
अर्थः- आलोयणा लेनेके शुभपरिणामसे गुरुके पास जानेको निकला हुआ भव्यजीव, जो कदाचित् आलोयणा लिये बिना बीच में ही मर जावे, तो भी वह आराधक होता है - आयरिआइ सगच्छे , संभोइअ इअर गीअ पासत्थे । ___ सारूवी पच्छाकड, देवय पार्डमा अरिह सिद्ध ॥ ६ ॥
अर्थ:- साधु अथवा श्रावकने प्रथम तो अपने गच्छ हीके जो आचार्य होवें, उनके पास अवश्य आलोयणा लेना । उनका योग न होवे तो अपने गच्छ ही के उपाध्याय, वे भी न हों तो अपने गच्छहीके प्रवर्तक,स्थविर अथवा गणावच्छे इकआदिसे आलोयणा लेना। अपने गच्छमें उपरोक्त पांचोंका योगन होवे तो संभोगिक- अपनी समाचारीको मिलते हुए दूसरे गच्छमें आचार्यआदि पांचोंमें जिसका योग मिले, उसीसे आलोयणा लेना । सामाचारीको मिलते हुए परगच्छमें आचार्यआदिका योग न होवे तो, भिन्नसामाचारीवाले परगच्छमें भी सं. वेगी आचार्यादिकमें जिसका योग होवे, उससे आलोयणा लेना यह भी न बने तो गीतार्थपासत्थाके पाससे आलोयणा लेना, बह भी न बने तो गीतार्थसारूपिकसे आलोयणा लेना। उसका