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४ सूक्ष्मदोष गिन्ती में न लेना और केवल बढे २ दोषोंकी आलोयणा लेना, ५ सूक्ष्मकी आलोयणा लेनेवाला बडे दोषों को नहीं छोड़ता ऐसा बतानेके लिये तृणग्रहणादि सूक्ष्म दोषकी मात्र आलोयणा लेना और बडे बडेकी न लेना । ६ छन्न याने प्रकटशब्द से आलोयण न करना, ७ शब्दाकुल याने गुरु भली भांति न जान सकें ऐसे शब्दाडंबर से अथवा आसपास के लोग सुनने पायें ऐसी रीतिसे आलोयण करना, ८ जो कुछ आलोयण करना हो वह अथवा आलोयणा ली हो उसे बहुत से लोगों को सुनावें, ९ अव्यक्त याने जो छेदग्रंथको न जानते हो ऐसे गुरुके पास आलोयण करना और १० लोकनिन्दा के भयसे अपने ही समान दोष सेवन करनेवाले गुरुके पास आलोयण करना । ये दश दोष आलोयणा लेनेवालेने त्याग देना चाहिये ।
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सम्यक् प्रकारसे आलोयणा करने में निम्नाङ्कित गुण हैं: लहु आल्हाई जगणं, अप्पपरनिवत्ति अज्जवं सोही || दुक्करकरणं आणा, निस्सलत्तं च सोहिगुणा ||१३||
अर्थ :--जैसे बोझा उठानेवालेको, बोझा उतारनेसे शरीर हलका लगता है, वैसेही आलोयणा लेनेवालेको भी शल्य निकाल डालने से अपना जीव हलका लगता है, २ आनन्द होता है, ३ अपने तथा दूसरोंके भी दोष टलते हैं, याने आप आलोयणा लेकर दोष मुक्त होता है यह बात प्रकटही है, तथा उसे देखकर दूसरे भी आलोयणा लेने को तैयार होते हैं जिससे