Book Title: Shraddh Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Bandhu Printing Press

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Page 749
________________ (७२६) भी योग न होवे तो पूर्व अथवा उत्तरदिशाको मुख करके अरिहंतों तथा सिद्धोंके समक्ष आलोवे, आलोये बिना कभी न रहे, कारण कि, शल्य सहित जीव आराधक नहीं कहलाता है । अग्गीओ नवि जाणइ, सोहिं चरणस्स देह ऊगहिकं । तो अप्पाणं आलो- अगं च पाडेइ संसारे ॥ ७ ॥ अर्थः- स्वयं गीतार्थ न होनेसे चरणकी शुद्धिको न जाने और लगेहुए पापसे कम या ज्यादा आलोयणा देवे और उससे तो वह पुरुष अपने आपको तथा आलोयणा लेनेवालेको भी संसारमें पटकता है। जह बालो जपतो, कज्जमकजं च उज्जु भणई । तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुक्को अ॥ ८ ॥ अर्थः- जैसे बालक बोलता हो, तब वह कार्य अथवा अकार्य जो हो सो सरलतासे कहता है, वैसे आलोयणा लेनेवालेने माया अथवा मद न रखते अपना पाप साफ साफ कहकर आलोयण करना। मायाइदोसरहिओ, पइसमयं वड्डमाणसंवेगो। आलोइज्ज अकज्जं, न पुणो काहंति निच्छयओ ॥९॥ अर्थः- माया मद इत्यादि दोष न रखकर समय समय संवेगभावनाकी वृद्धि कर जिस अकायेकी आलोयणा करे वह अकार्य फिर कदापि न करे ऐसा निश्चय करे ।

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