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(७२९) उनके भी दोष दूर होजाते हैं. ४ भलीभांति आलोयणा करनेसे सरलता प्रकट होती है.५ अतिचाररूप मल धुल जानेसे आत्माकी शुद्धि होती है, ६ आलोयणा लेनेसे दुष्कर कृत्य किया ऐसा भास होता है. कारण कि अनादिकालसे दोष. सेवनका अभ्यास पड गया है. परन्तु दोष करनेके बाद उनकी आलोयण करना यह दुष्कर है. कारण कि, मोक्ष तक पहुंचे ऐसे प्रबल आत्मवीर्य के विशेष उल्लासहीसे यह काम बनता है. निशीथचूर्णिमें भी कहा है कि-जीव जिम दोषका सेवन करता है वह दुष्कर नहीं; परन्तु सम्यक् रीतिसे आलोयण करनाही दुष्कर है. इसीलिये सम्यक् आलोयणा अभ्यतरतपमें गिनी है, और इसीसे वह मासखमणआदिसे भी दुष्कर है. लक्षणासाध्वी आदिकी ऐसी बात सुनते हैं किः--
इस चौबीसीसे अतीतकालकी अस्सीवीं चौबीसीमें एक बहुपुत्रवान राजाको सैकड़ों मानतासे एक कन्या हुई. स्वयंवरमंडपमें उसका विवाह हुआ, परन्तु दुर्दैवसे चौंरीके अन्दरही पतिके मरजानेसे विधवा होगई. पश्चात् वह सम्यक्प्रकारसे शील पालनकर सतीस्त्रियोंमें प्रतिष्ठित हुई और जैनधर्ममें बहुतही तत्पर होगई. एक समय उस चौवीसीके अंतिम अरिहंतने उसे दीक्षा दी. पश्चात् वह लक्षणा नामसे प्रसिद्ध हुई. एक समय चिडा चिडियाका विषयसंभोग देखकर वह मनमें विचार करने लगी कि, "अरिहंत महाराजने चारित्रवन्तोंको