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(७२५) भी योग न मिले तो गीतार्थपश्चात्कृतसे आलोयणा लेना । श्वेतवस्त्रधारी, मुंडी, लंगोट रहित, रजोहरणआदि न रखनेवाला, ब्रह्मचर्य पालन न करनेशला, भार्या रहित और भिक्षावृत्तिसे निर्वाह करनेवाला सारूपिक कहलाता है, सिद्धपुत्र तो शिखा और भार्या सहित होता है । चारित्र तथा साधु वेष त्यागकर जो गृहस्थ होगया हो वह पश्चात्कृत कहलाता है । ऊपर कहे हुए पासत्थादिकको भी गुरुकी भांति यथाविधि वन्दनाआदि करना। कारण कि, धर्मका मूल विनय है। जो पासत्थादिक अपने आपको गुणरहित माने और इसीसे वह वन्दना न करावे, तो उसे आसन पर बैठाकर प्रणाम मात्र करना, और आलोयणा लेना । पश्चात्कृतको तो दो घडी सामायिक तथा साधुका वेष देकर विधि सहित आलोयणा लेना। उपरोक्त पासत्थादिकका भी योग न मिले तो राजगृही नगरीमें गुणशिलादिक चैत्यमें जहां अनेकबार जिस देवताने अरिहंतगणधरआदि महापुरुषोंको आलोयणा देते देखा हो, वहां उस सम्यग्दृष्टिदेवताको अट्ठमआदि तपस्यासे प्रसन्न करके उसके पाससे आलोयणा लेना । कदाचित् उस समयके देवताका च्यवन होगया हो, और दूसरा उत्पन्न हुआ हो तो वह महाविदेहक्षेत्र में जा अरिहंत भगवान्को पूछकर प्रायश्चित्त देता है । यह भी न बने तो अरिहंतकी प्रतिमाके सन्मुख आलोयण करके स्वयं ही प्रायश्चित्त अंगीकार करे । अरिहंतप्रतिमाका