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(७२३) व्यवहार जानकर प्रायश्चित देनेमें सम्यक् रीतिसे वर्ताव करने वाले, पांच प्रकारका व्यवहार इस प्रकार है:-१ प्रथम आगमव्यवहार यह केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और नवपूर्वीका जानो. २ श्रुतव्यवहार यह आठसे अर्धपूर्वी तकके पूर्वधर, एकादशअंगके धारक तथा निशीथादिक सूत्रके ज्ञाता आदि सर्वश्रुतज्ञानियोंका जानो. ३ आज्ञाव्यवहार यह कि गीतार्थ दो आचार्य दूर २ देशों में रहनेसे एक दूसरेको मिल न सकें तो वे चुपचाप जो परस्पर आलोयणा-- प्रायश्चित्त देते हैं वह जानो. ४ धारणाव्यवहार याने अपने गुरुने जिस दोषका जो प्रायश्चित दिया हो वह ध्यानमें रखकर उसीके अनुसार दूसरोंको देना. ५ जीतव्यवहार याने सिद्धांतमें जिस दोषका जितना प्रायश्चित कहा हो, उससे अधिक अथवा कम प्रायश्चित परम्पराका अनुसरण करके देना. ४ अपनीडक अर्थात् आलोषणा लेनेवाला शर्मसे बराबर न कहता होवे तो उसको वैराग्य उत्पन्न करनेवाली वार्ताएं ऐसी युक्तिसे कहे कि, जिसे सुनते ही वह व्यक्ति शर्मका त्यागकर भलीभांति आलोवे, ऐसे ५ प्रकुर्वी अर्थात् आलोयणा लेनेवालेकी सम्यक रातिसे शुद्धि करनेवाले. ६ अपरिस्रावी अर्थात् आलोयणा दी होवे तो दूसरेको न कहनेवाले. ७ निर्यापक अर्थात् जो जितना प्रायश्चित ले सके उसे उतनाही देनेवाले. ८ अपायदर्शी अर्थात सम्यक् आलोयणा और प्रायश्चित्त न करनेवालेको इस भवमें