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शब्द से प्रभावनाशब्द में 'प्र' यह अक्षर अधिक है, सो युक्त ही है. कारण कि भावना तो उसके कर्त्ता ही को मोक्ष देती है। और प्रभावना तो उसके कर्त्ता तथा दूसरों को भी मोक्ष देती है.
इसीतरह गुरुका योग होवे तो प्रतिवर्ष जघन्यसे एकबार तो गुरुके पास अवश्य आलोयणा लेना चाहिये कहा है कि प्रतिवर्ष गुरुके पास आलोयणा लेना, कारण कि अपनी आत्माकी शुद्धि करने से वह दर्पण की भांति निर्मल होजाती है. आगममें (श्री आवश्यकनियुक्ति में ) कहा है कि, चौमासी तथा संवत्सरी में आलोयणा तथा नियम ग्रहण करना. वैसेही पूर्व ग्रहण किये हुए अभिग्रह कहकर नवीन अभिग्रह लेना. श्राद्धजीतकल्पआदि ग्रन्थोंमें जो आलोयणा विधि कही है, वह इस प्रकार है :--
पक्खिअचाउम्मासे, वारसे उक्कोसओ अ बारसहिं ॥ नियमा आलोइज्जा, गीआइ गुणस्स भणिअं च ॥१॥
अर्थ:- पक्खी, चौमासी अथवा संवत्सरीके दिन जो न बन सके तो अधिक से अधिक बारहवर्ष में तो गीतार्थगुरुके पास आलोयणा अवश्य ही लेना चाहिये. कहा है कि :-- सल्लुद्धरणनिमित्तं खित्तंमी सत्त जो अणसयाई ॥
'काले वारस वरिसा, गीअत्थगवेसणं कुज्जा ॥२॥
अर्थ :-- आलोयण लेने के निमित्त क्षेत्र से सातसौ योजन क्षेत्रके प्रमाण में तथा कालसे बारह वर्ष तक गीतार्थगुरुकी गवेषणा करना | आलोयणा देनेवाले आचार्यके लक्षण ये हैं:
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