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उब्भावणा पवयणे, सद्धाजणणं तेह बहुमाणो || ओहावणा कुतित्थे, जअिं तह तित्थवुड्डी || १ ||
अर्थ :- प्रवेश के अवसर पर सत्कार करने से जैनशासनकी बडी दप्ति होती है, अन्यसाधुओं को श्रद्धा उत्पन्न होती है, कि, जिससे ऐसी शासनकी उन्नति होती है, वह सत्कृत्य हम भी ऐसे ही करेंगे. वैसेही श्रावक, श्राविकाओंकी तथा दूसरोंकी भी जिनशासन पर बहुमान बुद्धि उत्पन्न होती है, कि जिसमें ऐसे महान तपस्वी होते हैं, वह जिनशासन महाप्रतापी है. " साथही कुतीर्थियोंकी हीलना होती है, कारण कि, उनमें ऐसे महासच्चधारी महापुरुष नहीं हैं. इसी प्रकार प्रतिमा पूरी करनेवाले साधुका सत्कार करना यह आचार है. इसी प्रकार तीर्थकी वृद्धि होती है, अर्थात् प्रवचनका अतिशय देखकर बहुतसे भव्य प्राणी संसार पर वैराग्य पाकर दीक्षा लेते हैं, ऐसा व्यवहारभाष्य की वृत्ति में कहा है, इसी तरह शक्तिके अनुसार श्रीसंघ - की प्रभावना करना, अर्थात् बहुमानसे श्रीसंघको आमंत्रण करना, तिलक करना, चंदन, जवादि, कपूर, कस्तूरी आदि सुगंधित वस्तुका लेप करना, सुगंधित फूल अर्पण करना, नारिo आदि विविध फल देना तथा तांबूल अर्पण करना. इत्यादिप्रभावना करनेसे तीर्थंकरपनाआदि शुभफल मिलता है, कहा है कि - अपूर्वज्ञान ग्रहण, श्रुतकी भक्ति और प्रवचनकी प्रभावना ह तीनों कारणोंसे जीव तीर्थंकरपना पाता है. भावना