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(७१८) मोक्षलक्ष्मी ) प्राप्त करता है, मानो मुक्तिरूप कन्याकी वरमाला, सुकृतरूप जल खेचकर निकालनेकी घडोंकी माला तथा प्रत्यक्षगुणों की गुंथी हुई माला ही हो, ऐसी माला धन्य लोगों ही से पहिरी जाती है. इसी प्रकार ही से शुक्ला पंचमी आदि विविध तपस्याओंके उजमणे गी उन तपस्याओंके उपवासादिकी संख्यानुसार द्रव्य, कटोरियां, नारियल, लड्डू आदि विविध वस्तुएं रख कर शास्त्र तथा संप्रदायके अनुसार करना.
इसी भांति तीर्थकी प्रभावनाके लिये श्रीगुरुमहाराज पधारनेवाले हो, तब उनका सामैया, प्रभावनाआदि प्रतिवर्ष जघन्यसे एक बार तो अवश्य करना ही चाहिये. जिसमें श्रीगुरुमहाराजका प्रवेशोत्सव पूर्णतः विशेष सजधजसे चतुर्विध संघ सहित साम्हने जाकर तथा श्रीगुरुमहाराज व संघका सत्कार करके यथाशक्ति करना. कहा है कि- श्रीगुरुमहाराजको सन्मुख गमन, वन्दन, नमस्कार और सुखशान्तिकी पृछना करनेसे चिरकाल संचित पाप क्षणभरमें शिथिल होजाता है. पेथड श्रेष्ठिने तपा० श्रीधर्मघोषसूरिजीके प्रवेशोत्सवमें बहोत्तर हजार टंकका व्यय किया था. 'संवेगी साधुओंका प्रवेशोत्सव करना अनुचित है' ऐसी कुकल्पना कदापि न करनी चाहिये. कारण कि, सिद्धान्तमें साम्हने जाकर उनका सत्कार करनेका प्रतिपादन किया हुआ है. यही बात साधुकी प्रतिमाके अधि. कारमें श्रीव्यवहारभाष्यमें कही है. -था