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गीत्थो कडजोगी, चारिती तहय गाहणाकुसलो ॥ खेअन्नो अविसाई, भणिओ आलोअणायरिओ || ३॥ अर्थ:--आलोयणा देनेवाले आचार्य गीतार्थ अर्थात् निशीयआदि सूत्रार्थ के ज्ञाता, कृतयोगी अर्थात् मन, वचन, काया के शुभ योग रखनेवाले अथवा विविध तपस्या करनेवाले, अर्थात विविध प्रकारके शुभध्यानसे तथा विशेषतपस्या से अपने जीव तथा शरीरको संस्कार करनेवाले, चारित्री अर्थात् निरतिचार चारित्र पालनेवाले, ग्राहण कुशल अर्थात् आलोयणा लेनेवाले से बहुत युक्तिसे विविध प्रकार के प्रायश्चित तथा तप आदि स्वीकार कराने में कुशल, खेदज्ञ अर्थात् आलोयणाके लिये दी हुई तपस्याआदिमें कितना श्रम पडता है ? उसके ज्ञाता अर्थात् आलोयणा विधिका जिन्होंने बहुतही अभ्याससे ज्ञान प्राप्त किया है, अविषादी अर्थात् आलोयणा लेनेवालेका महान् दोष सुननेमें आवे तो भी विषाद न करनेवाले, आलोयणा लेनेवालेको भिन्न २ दृष्टान्त कहकर वैराग्यके वचन से उत्साह देनेवाले हो ऐसा शास्त्रमें कहा है।
आयारवमाहारव, ववहारुब्बीलए पकुब्वी अ ॥ अपरिस्सा निज्जव, अवायसी गुरू भणिओ || ४ || अर्थ :- १ आचारवान् याने ज्ञानादि पांच आचारको पालन करनेवाले, २ आधारवान् याने आलोये हुए दोषका यथावत् मनमें स्मरण रखनेवाले, ३ व्यवहारवान् याने पांच प्रकारका