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करके पीछे नहीं फेरना. कर्मबन्धन नहीं कराना. धर्मकी अव. हेलना भी न कराना. अपने मनको निर्दय न रखना. भोजनके समय द्वार बन्द करना आदि महान् अथवा दयालुपुरुषोंका लक्षण नहीं है. सुनने में भी ऐसा आता है कि, चित्रकूट में चित्रांगद राजा था. उस पर चढाई कर शत्रुओंने चित्रकूट गढ घेर लिया. शत्रुओंके अन्दर घुस आनेका बडा डर होते हुए भी राजा चित्रांगद प्रतिदिन भोजनके समय पोलका दरवाजा खुलवाता था. गणिकाने यह गुप्त भेद प्रकट कर दिया जिससे शत्रुओंने गढ जीत लिया...'इत्यादि. इसलिये श्रावकने और विशेष करके ऋद्धिवन्तश्रावकने भोजनके समय कदापि द्वार बन्द नहीं करना चाहिये. कहा है कि-अपने उदरका पोषण कौन नहीं करता ? परन्तु पुरुष वही है जो बहुतसे जीवोंका उदर पोषण करे. इसलिये भोजनके समय आये हुए अपने बान्धवादिको अवश्य जिमाना चाहिये. भोजनके अवसर पर आये हुए मुनिराजको भक्तिसे, याचकोंको शक्ति के अनुसार और दुःखीजीवोंको अनुकंपासे सन्तुष्ट करनेके अनंतरही भोजन करना उचित है. आगममें भी कहा है कि--सुश्रावक भोजन करते समय द्वार बंद न करे. कारण कि, जिनेन्द्रोंने श्रावकोंको अनुकम्पादान की मनाई नहीं करी है. श्रावकको चाहिये कि भयंकर भवसागरमें दुःखसे पीडितजीवोंके समुदायको देखकर मनमें जाति पांति अथवा धर्मका भेद न रखते द्रव्यसे अन्नादिक देकर वथा भाव