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उत्तरः- हम कहते हैं कि चतुर्दशीहीको किया जाय. जो अमावास्या अथवा पूर्णिमाको पक्खी प्रतिक्रमण किया जाय तो चतुर्दशी तथा पक्खीके दिन भी उपवास करनेका कहा है, इस से पक्खी आलोयणा भी छट्टसे होजाती है. और ऐसा करने से आगमवचनका विरोध आता है. आगम में कहा है कि - "अट्टम - छठ्ठचउत्थं, संवच्छरचाउमा सपक्खेसु " दूसरे आगममें जहां पाक्षिक " शब्द ग्रहण किया है, वहां " चतुर्दशी " शब्द पृथक नहीं लिया, और जहां " चतुर्दशी " शब्द ग्रहण किया है वहां " पाक्षिक " शब्द पृथकू नहीं लिया. यथा:--" अंड मिचउदसीसु उववासकरणं " यह वचन पाक्षिकचूर्णि में है. "सो अट्ठमिचउद्दसीसु उववासं करे " यह वचन आवश्यकचूर्णि में है. "उत्थछट्टमकरणे अडमिपक्खचउमासवरिसे अ" यह वचन व्यवहारभाष्यकी पीठिका में है. 'अट्ठमिचउदसीनाणपंचमीचउमास ० ' इत्यादि वचन महानिशीथ में हैं. व्यवहारसूत्रके छ उद्देशेमें " पक्खस्स अट्ठमी खल, मासस्स य पक्खिअं मुणेअव्वं " इस वचनकी व्याख्या करते हुए वृत्तिकारने "पाक्षिक" - शब्दका अर्थ चतुर्दशीही किया है, जो पक्खी और चतुर्दशी
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१ संवत्सरी पर अट्ठम, चौमासी पर छट्ठ और पक्खी पर उपवास करना, २ अष्टमीचतुर्दशीको उपवास करना, ३ सो अष्टमी चतुर्दशीको उपवास करे. ४ अट्ठम तथा पक्खी पर उपवास, चौमासी पर छट्ठ और संवत्सरी पर अट्ठम करना,