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(६३१) भिन्न होते तो आगममें दोनों शब्द पृथक् २ आते, परन्तु ऐसा नहीं है. इससे हम यह निर्णय करते हैं कि पक्खी चतुर्दशीहीके दिन होती है।
पूर्वकालमें चौमासी पूनमको तथा संवत्सरी पंचमीको करते थे, परन्तु वर्तमानकालमें श्रीकालिकाचार्यकी आचरणासे चौमासी चतुर्दशीको और संवत्सरी चौथको की जाती है; यह बात सर्वसम्मत होनेसे प्रामाणिक है. श्रीकल्पभाष्यआदिग्रंथों में कहा है कि किसी भी आचार्यने किसी भी समय मनमें शठता न रखते जो कुछ निरवद्य आचरण किया होवे और अन्यआचार्योंने उसका जो प्रतिषेध न किया होवे, तो वह बहुमत आचरितही समझना चाहिये. ( अनाचरित नहीं.) तीर्थोद्गारआदि ग्रन्थोंमें भी कहा है कि-शालिवाहनराजाने संघके आदेशसे श्रीकालिकाचार्यद्वारा चतुर्दशीके दिन चौमासी और चौथके दिन संवत्सरी कराई. नौसौ तिरानबेके साल चतुर्विध श्रीसंघने चतुर्दशीके दिन चौमासी प्रतिक्रमण किया. वह आचरणा प्रमाणभूत है. इस विषयका सविस्तृत वर्णन देखना हो तो पूज्यश्रीकुलमंडनसूरिविरचित 'विचारामृतसंग्रह' देखो.
प्रतिक्रमण करने की विधि योगशास्त्रकी वृत्तिमें कही हुई चिरंतनाचार्यकृत गाथाओं पर से निश्चित करना चाहिये यथाः
पंचविहायारविसु--द्धिहे उमिह साहु सावगो वावि ॥ पाडकमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्कोऽवि ॥१॥