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पर्व है, अतएव किसी भी प्रकारसे आज मुझे अवश्य लाभ होना चाहिये,प्रातःकाल राजाने आपका समस्त भंडार खाली हुए और श्रेष्ठीका घर स्वर्णमोहर तथा रत्नोपरत्नसे परिपूर्ण भरा हुआ देखकर बडा आश्चर्य और खेद हुआ. तब उसने श्रेष्ठीको खमा कर पूछा कि- 'हे श्रेष्ठिन् ! यह धन तेरे घर किस प्रकार गया ?' श्रेष्ठीने उत्तर दिया- "हे स्वामिन् ! मैं कुछ भी नहीं जानता, परन्तु पर्वके दिन पुण्यकी महिमासे मुझे लाभ है। होता है.” तब पर्वकी महिमा सुन कर, जातिस्मरणज्ञान पाये हुए राजाने भी यावज्जीव छाहों पर्व पालनेका नियम लिया. उसीसमय भंडारीने आकर राजाको बधाई दी कि-'वर्षाकालकी जलवृष्टिसे जैसे सरोवर मरजाते हैं, वैसे अपने समस्त भंडार इसी समय धनसे परिपूर्ण होगये.' यह सुन राजाको बडा आश्चर्य व हर्ष हुआ. इतनेमें चंचल कुंडल आदि आभूषणोंसे देदीप्यमान एक देवता प्रकट होकर कहने लगा कि, 'हे राजन् ! तेरा पूर्वभवका मित्र जो श्रेष्ठिपुत्र था और अभी जो देवताका भव भोग रहा है, उसे तू पहिचानता है ? मैंने ही पूर्वभवमें तुझको वचन दिया था उससे तुझे प्रतिबोध करने के लिये तथा पर्वदिवसकी आराधना करनेवाले लोगोंमें शिरोमणि इस श्रेष्ठीको सहायता करने के लिये यह कृत्य किया. इसलिये तू धर्मकृत्यमें प्रमाद न कर. अब मैं उक्त तेली व कौटुंबिकके जीव जोकि राजा हुए हैं, उनको प्रतिबोध करने जाता हूं.