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आदि संबंधको पाने वाले जीव तो किसी २ जगह बिरले ही होते हैं । साधर्मिभाईका मिलाप भी बड़ा पुण्यकारी है, तो फिर शास्त्रानुसार साधर्मिका आदरसत्कार करे तो बहुत ही पुण्यसंचय होवे इसमें कहना ही क्या है ? कहा है कि- एक तरफ सर्व धर्म और दूसरी तरफ सार्मिक वात्सल्य रखकर बुद्धिरूप तराजूसे तोलें तो दोनों समान उतरेंगे ऐसा कहा है. साधर्मिकका आदर सत्कार इस प्रकार करना चाहियेः___अपने पुत्रआदिका जन्मोत्सव और विवाह आदि होवे तो साधर्मिभाइयोंको निमंत्रण करना और उत्तम भोजन, तांबूल, वस्त्र, आभूषणआदि देना. कदाचित् वे किसी समय संकटमें आ पडे तो अपना द्रव्य खर्च करके उन्हें आपत्तिसे बचाना. पूर्वकर्मके अंतरायके दोषसे किसीका धन चला जावे तो उसे पुनः पूर्ववत् अवस्थामें लाना. जो अपने साधर्मिभाइयोंको पैसे टके सुखी न करे, उस पुरुषकी मोटाई किस कामकी ? कहा है कि--जिसने दीनजीवोंका उद्धार न किया, सार्मिक वात्सल्य नहीं किया, और हृदयमें वीतरागका ध्यान न किया, उन्होंने अपना जन्म व्यर्थ गुमाया. अपने साधर्मिभाई जो धर्मसे भ्रष्ट होते हों तो, चाहे किसी भी प्रकारसे उन्हें धर्ममें स्थिर करना. जो वे धर्मकृत्य करनेमें प्रमाद करते हों तो उनको स्मरण कराना, और अनाचारादिसे निवारना. कहा है कि,