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उसने भी गुरुमहाराज को सूत्रकी मुंहपत्तिआदि तथा दो तीन श्रावक श्राविकाओंको सुपारी आदि देकर प्रतिवर्ष भक्तिपूर्वक संघपूजा करना. दरिद्री पुरुष इतना ही करे तो भी उसे बहुत लाभ है. कहा है कि बहुत लक्ष्मी होने पर नियम पालन करना, शक्ति होते क्षमा धारण करना, तरुणावस्थामें व्रत ग्रहण करना,
और दरिद्रीअवस्थामें अल्प मात्र भी दान देना, इन चारों वस्तुओंसे बहुत लाभ होता है. वस्तुपाल मंत्रीआदि लोग तो प्रत्येक चातुर्मासमें संघपूजाआदि करते थे और बहुतसे धनका व्यय करते थे, ऐसा सुनते हैं. दिल्लीमें जगसीश्रेष्ठीका पुत्र महणसिंह श्रीतपागच्छाधिपपूज्यश्रीदेवचन्द्रसूरिजीका भक्त था. उसने एकही संघपूजामें जिनमतधारी सर्वसंघको पहिरावणीआदि देकर चौरासी हजार टंकका व्यय किया. दूसरे ही दिन वहां पंडित देवमंगलगणि पधारे. पूर्वनें महणसिंहके बुलाये हुए श्रीगुरुमहाराजने उन गणिजीको भेजे थे। उनके आगमनके समय महणसिंहने संक्षेप में संघपूजा करी, उसमें छप्पन हजार टंकका व्यय किया । इत्यादिक वार्ताएं सुनने में आती हैं।
साधर्मिकवात्सल्य भी सर्वसाधर्मिभाइयोंका अथवा शक्तिके अनुसार कमका करना चाहिये । साधर्मिभाइयोंका योग मिलना प्रायः दुर्लभ है । कहा है कि--- सर्व जीव सर्व प्रकारका सम्बन्ध परस्पर पूर्वमें पाये हुए हैं । परन्तु साधर्मि