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के भोगको छोड देता है,वह स्वर्गलोकमें पूजा जाता है. जो पुरुष कडवा, खट्टा, तीक्ष्ण, तूरा, मीठा, खारा इन रसोंका त्याग करता है, वह पुरुष कभी भी दुर्भाग्य व कुरूपता नहीं पाता. तांबूलभक्षणका त्याग करे तो भोगी होता है और शरीरलावण्य पाता है. जो फलशाक और पत्तोंका शाक (भाजीपाला) त्यागता है वह धन सन्तान पाता है. हे राजन् ! चातुर्मासमें गुड भक्षण न करे तो मधुरस्वरवाला होता है. कढाई पर पकाया हुआ अन्न भक्षण त्यागे तो बहुत संतति पाता है. भूमिमें संथारे पर सोवे तो विष्णुका सेवक होता है. दही तथा दूधका त्याग करे तो गौलोक नामक देवलोकको जाय. मध्याह्न समय तक जल पीना वर्जे तो रोगोपद्रव न होवें. जो पुरुष चातुर्मासमें एकान्तर उपवास करता है, वह ब्रह्मलोकमें पूजा जाता है. जो पुरुष चातुर्मासमें नख व केश न उतारे, वह प्रतिदिन गंगास्नानका फल पाता है. जो पर अन्न त्यागे वह अनन्त पुण्य पाता है. चातुर्मासमें भोजन करते समय जो मौन न रहे, वह केवल पाप ही भोगता है, ऐसा जानो. मौन धारण करके भोजन करना उपवासके समान है." इसलिये चातुर्मासमें मौनभोजन तथा अन्य नियम अवश्य ग्रहण करना चाहिये. इत्यादि ।
___ इति श्रीरत्नशेखर सूरिविरचितश्राद्धविधिकौमुदीकी हिन्दीभाषाका चातुर्मासिककृत्यनामक
चतुर्थः प्रकाशः सम्पूर्णः