________________
(६८४) शाकका त्याग और सामायिकग्रहण इत्यादि नियम दुःखसे पाले जाते हैं, परन्तु पूजा, दान आदि नियम उनसे सुख पूर्वक पाले जा सकते हैं.दरिद्रीपुरुषोंकी बात इससे विरुद्ध है तथापि चित्तकी एकाग्रता होवे, तो चक्रवर्ती तथा शालिभद्रआदि लोगोंने जैसे दीक्षादिके कष्ट सहन किये, वैसेही सब नियम सब लोगोंसे सुख पूर्वक पालन हो सकते हैं, कहा है कि जब तक धीर पुरुष दीक्षा नहीं लेते तभी तक मेरु पर्वत ऊंचा है, समुद्र दुस्तर है, और कार्यकी गति विषम है. ऐसा होने पर भी पाले न जा सकें ऐसे नियम लेनेकी शक्ति न होवे, तो भी सुख पूर्वक पाले जा सकें ऐसे नियम तो श्रावकने अवश्यही लेना चाहिये. जैसे वर्षाकालमें कृष्ण तथा कुमारपालआदिकी भांति सर्वदिशाओंमें जानेका त्याग करना उचित है. वैसा करनेकी शक्ति न होवे तो जिस समय जिन दिशाओंमें गये बिना भी निर्वाह हो सकता हो, उस समय उन दिशाओंमें जानेका त्याग करना. इसी प्रकार सर्व सचित्त वस्तुओं का त्याग न किया जा सके तो, जिस समय जिस वस्तुके बिना निर्वाह हो सकता हो, उस समय उस वस्तु. का नियम लेना. जिस मनुष्यको जिस जगह, जिस समय, जो वस्तु मिलना सम्भव न हो, जैसे कि--दरिद्री पुरुषको हाथी आदि, मरुदेशमें नागरबेल के पानआदि, तथा आमआदि फलकी ऋतु न होने पर वे फल दुर्लभ हैं, इसलिये उस पुरुषने उस स्थानमें, उस समय उसी वस्तुका नियम ग्रहण करना. इस