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मण दे " पडिलेहणं करेमि " यह कहे । तथा मुहपत्ति, आसन और पहिरनेके वस्त्रका पडिलेहन कर ले । श्राविका मुंहपत्ति, आसन, ओढनेका वस्त्र कांचली और घाघरेका पडिलेहण करे | पश्चात् एक खमासमण दे " इच्छकारि भगवन् ! पडिलेहणा पडिलेहावो " ऐसा कहे । तत्पश्चात् " इच्छं " कह कर स्थापना। चार्यका पडिलेहणकर स्थापनकर एक खमासमण देना । उपधिमुंहपत्तिकी पडिलेहणाकर " उपधि संदिसावेमि और पडिलेहेमि" ऐसा कहे। पश्चात् वस्त्र, कम्बल आदिकी पडिलेहणाकर, पौषधशालाका प्रमार्जन कर कूडा कचरा उठाकर परठ दे । तत्पश्चात् इरिया वही प्रतिक्रमणकर गमनागमनकी आलोचना करे व एक खमासमण देकर मंडली में बैठे और साधुकी भांति सज्झाय करे । पश्चात् पौणपोरिसी होवे, तब तक पढे, गुणे अथवा पुस्तक बांचे. पश्चात् एक खमासमण दे मुंहपति पडिलेहणकर कालबेला ( शुभ समय ) होवे वहां तक पूर्व की भांति सज्झाय करे जो देववंदन करना होवे तो " आवस्स " कहकर जिनमंदिरमें जा देववंदन करे. जो आहार करना होवे तो पच्चखान पूर्ण होने पर एक खमासमण देकर, मुंहपत्ति पडिलेहण कर, पुनः एक खमासमण देकर कहे कि, "पारावह पोरिसी पुरिमड्डो वा चउहार कओ तिहार कओ वा आसि, निव्विएणं आयंबिलेणं एगासणेणं पाणाहारेण वा जा का वेला तीए" इस प्रकार कह, देव वन्दना कर, सज्झाय कर, घर जा, जो घर सौहाथ से अधिक दूर होवे तो
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