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, भगवान्ने मार्गशीर्ष शुक्ला इस तिथिमें
लोकानुसरणसे करना. अरिहन्तके जन्मादि पांच कल्याणक भी पर्वतिथिरूप ही समझना चाहिये. दो तीन कल्याणक जिस दिन होवें तो वह विशेष पर्वतिथि मानो. सुनते हैं कि- सर्व पर्वतिथियोंकी आराधना करनेको असमर्थ कृष्णमहाराजने श्रीनेमिनाथभगवानको पूछा कि, " हे स्वामिन् ! सारे वर्ष में आराधन करने योग्य उत्कृष्ट पर्व कौनसा है ?" भगवान्ने कहा- "हे महाभाग ! जिनराजके पंचकल्याणकसे पवित्र हुई मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी ( मौनएकादशी ) आराधना करनेके योग्य है । इस तिथिमें पांच भरत और पांच एरवत मिल कर दश क्षेत्रोंमें प्रत्येकमें पांच २ मिल कर सब पचास कल्याणक हुए." पश्चात् कृष्णने मौन, पौषध, उपवासआदि करके उस दिनकी आराधना करी. तत्पश्चात् " यथा राजा तथा प्रजा" के न्यायसे सर्वलोगोंमें '. यह एकादशी आराधनेके योग्य है " यह प्रसिद्धी हुई. पर्वतिथिके दिन व्रत, पच्चखानआदि करनेसे महत् फल प्राप्त होता है. कारण कि, उससे शुभगतिकी आयुष्य संचित होती है. आगममें कहा है कि:--
प्रश्नः-- हे भगवन् ! बीजआदि तिथियों में किया हुआ धर्मानुष्ठान क्या फल देता है ?
उत्तरः-- हे गौतम ! बहुत फल है. कारण कि, प्रायः इन पर्व-तिथियोंमें परभवकी आयुष्य बंधती है. इसलिये इनमें