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है. अतिशय भोजन करनेसे अजीर्ण, वमन, विरेचन (अतिसार) तथा मृत्यु आदि भी सहज ही में होजाते हैं. कहा है कि - हे जीभ ! तू भक्षण करने व बोलनेका परिमाण रख. कारण कि. अतिशय भक्षण करने तथा अतिशय बोलनेका परिणाम भयंकर होता है. हे जीभ ! जो तू दोषरहित तथा परिमित भोजन करे, और जो दोष रहित तथा परिमित बोले, तो कर्मरूप वीरोंके साथ लडनेवाले जीवसे तुझीको जयपत्रिका मिलेगी; ऐसा निश्चय समझ. हितकारी, परिमित और परिपक्व भोजन करनेवाला, बाई करवट से सोनेवाला, हमेशा हिरने फिरनेका परिश्रम करनेवाला, विलम्ब न करते मलमूत्रका त्याग करनेवाला और स्त्रियोंके सम्बन्धमें अपने मनको वशमें रखनेवाला मनुष्य रोगोंको जीतता है. व्यवहारशास्त्रादिकके अनुसार भोजन करने की विधि इस प्रकार है:
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अतिशय प्रभातकालमें, बिलकुल सन्ध्याके समय, अथवा रात्रिमें तथा गमन करते भोजन न करना. भोजन करते समय अन्नकी निन्दा न करना, बायें पैर पर हाथ भी न रखना तथा एक हाथमें खाने की वस्तु लेकर दूसरे हाथ से भोजन न करना. खुली जगह में, धूपमें, अन्धकारमें अथवा वृक्षके नीचे कभी भी भोजन न करना, भोजन करते समय तर्जनी अंगुली खडी न रखना. मुख, वस्त्र, और पग धोये विना, नग्नावस्थासे, मैले वस्त्र पहिरकर तथा बायां हाथ थालीको लगाये बिना भोजन ज