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मुनिराज अथवा गीतार्थश्रावक, सिद्धपुत्रआदिके पास योग्यतानुसार पांच प्रकारकी सज्झाय करना. १ वाचना, २ पृच्छना, ३ परावर्त्तना, ४ धर्मकथा, और ५ अनुप्रेक्षा, ये सज्झायके पांच प्रकार हैं । जिसमें निर्जराके लिये यथायोग्य सूत्रआदिका दान करना अथवा ग्रहण करना, उसे वाचना कहते हैं. वाचनामें कुछ संशय रहा हो वह गुरुको पूछना उसे पृच्छना कहते हैं. पूर्वमें पढ़े हुए सूत्रादिक भूल न जावें उसके लिये पुनरावृति करना उसे परावर्त्तना कहते हैं. जम्बूस्वामीआदि स्थविरोंकी कथा सुनना अथवा कहना उसे धर्मकथा कहते हैं. मनही में बारम्बार सूत्रादिकका स्मरण करना उसे अनुप्रेक्षा कहते हैं। यहां गुरुमुखसे सुने हुए शास्त्रार्थका ज्ञानीपुरुषोंके पास विचार करनारूप सज्झाय विशेषकृत्यके समान समझना चाहिये. कारण कि “ भिन्न २ विषयके ज्ञाता पुरुषोंके साथ शास्त्रार्थके रहस्यकी बातोंका विचार करना" ऐसा श्री योगशास्त्रका वचन है. यह सज्झाय बहुत ही गुणकारी है. कहा है कि, सज्झायसे श्रेष्ठ ध्यान होता है, सर्व परमार्थका ज्ञान होता है, तथा सज्झायमें रहा हुआ पुरुष क्षण क्षणमें वैराग्य दशा पाता है । पांच प्रकारकी सज्झाय ऊपर आचारप्रदीपग्रंथमें उत्कृष्ट दृष्टांतोंका वर्णन किया गया है, इसलिये यहां नहीं किया गया (८)