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(६१७) हो उस समय भक्षण करना. भोजन करते वक्त मौन करना. तथा शरीर सीधा रखना और प्रत्येक भक्ष्यवस्तुको सूंघना; कारण कि, उससे दृष्टिदोष टलता है. अधिक खारा, अधिक खट्टा, अधिक गरम अथवा अधिक ठंडा अन्न भक्षण न करना. अधिक शाक न खाना. अतिशय मीठी वस्तु न खाना तथा रुचिकर वस्तु भी अधिक न खाना चाहिये. अतिशय उष्ण अन्न रसका नाश करता है, अतिशय खट्टा अन्न इन्द्रियोंकी शक्ति कम करता है, अतिशय खारा अन्न नेत्रोंको विकार करता है; और अतिशय स्निग्ध अन्न ग्रहणी ( आमाशयकी छही थैली)को बिगाडता है. कडुवे और तीक्ष्ण आहारसे कफका, तूरे और मीठे आहारसे पित्तका, स्निग्ध और उष्ण आहारसे वायुका तथा उपवाससे शेषरोगोंका नाश करना चाहिये. जो पुरुष शाकभाजी अधिक न खावे, घृतके साथ अन्न खावे, दूध आदि स्निग्ध वस्तुका सेवन करे, अधिक जल न पावे, अजीर्ण पर भोजन न करे, मूत्रल तथा विदाही वस्तुका सेवन न करे, चलते हुए भक्षण न करे, और खाया हुआ पचजाने पर अवसरसे भोजन करे, उसे यदि कभी शरीर रोग होता है तो बहुत ही थोडा होता है।
नीतिवान पुरुष प्रथम मधुर, मध्यमें तीक्ष्ण और अन्तमें कडुवा ऐसा दुर्जनकी मित्रताके सदृश भोजन चाहते हैं. शीघ्रता न करते प्रथम मधुर और स्निग्धरस भक्षण करना, मध्यमें