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किस अन्यकारणसे तूने यह महाकठिनतपस्या अंगीकारकी है। सो कह.!" - पोपटके इस प्रश्न पर तापसकुमार नेत्रोंसे अश्रुधारा गिराता हुआ गद्गद्स्वरसे बोला. "हे चतुर तोते ! हे श्रेष्ठ कुमार ! जगत्में ऐसा कौन है जो तुम्हारी समानता कर सके ? कारण कि मेरे समान अनुकंपापात्र पर तुम्हारी दया स्पष्ट दीख रही है. अपने आपके अथवा अपने कुटुम्बियोंके दुःखित होने पर कौन दुःखी नहीं होता? परन्तु परदुःखसे दुःखी होनेवाले पुरुष जगतमें बिरले ही होंगे कहा है कि
शूराः सन्ति सहस्रशः प्रतिपदं विद्याविदोऽनेकशः, सन्ति श्रीपतयोऽप्यपास्तधनदास्तेऽपि क्षिती भूरिशः । किन्त्वाकर्ण्य निरीक्ष्य वाऽन्यमनुजं दुःखादितं यन्मनः, स्ताद्रूप्यं प्रतिपद्यते जगति ते सत्पूरुषाः पञ्चषाः ॥ १४४ ॥ अबलानामनाथानां, दीनानामथ दुःखिनाम् । परैश्व परिभूतानां, त्राता कः ? सत्तमात्परः ।। १४५ ॥
शूरवीर पंडित, अपनी लक्ष्मीसे कुबेरको भी मोल ले लेवें ऐसे श्रीमंत लोग तो पृथ्वी पर पद पद ऊपर सहस्रों दृष्टि आवेंगे परन्तु जिस पुरुषका मन पर दुखःको प्रत्यक्ष देखकर अथवा कानसे श्रवण कर दुःखी होता है ऐसे सत्पुरुष जगतमें पांच छः ही होंगे. स्त्रियों, अनाथ, दीन, दुःखी और भय से पराभव पाये हुए मनुष्योंकी रक्षा करनेवाले सत्पुरुषोंके सिवाय और कौन