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स्वाद लेनेसे मृत्यु टालकर किस प्रकार जीवित रहते ? प्रशंसाके योग्य गुणवती तथा इन्द्राणीके समान सुन्दर स्वरूपशाली कुसुमसुन्दरी नामक उसकी राजमहिषी थी. वह एक दिन सुखनिद्रामें सो रही थी इतने में उसे एक सुन्दर कन्याकी प्राप्ति करानेवाला स्वप्न दृष्टिमें आया. उसके स्वप्नमें ऐसा सम्बन्ध था कि मनमें रति और प्रीति इन दोनोंका जोडा कामदेवकी गोद मेंसे उठकर मानों प्रीतिसे उसकी गोदमें आकर बैठा. शीघ्र जागृत हुई कुसुमसुन्दरीने विकसितकमलकी भांति अपने नेत्र खोले. भारी जलप्रवाहसे भराई हुई नदीकी भांति उसका हृदय अकथनीय आनन्दप्रवाहसे परिपूर्ण हो गया. उसने स्वमका यथावत् वर्णन राजासे कह सुनाया. स्वप्नविचारके ज्ञाता राजाने उसका यह फल बताया कि, "हे सुन्दर विधाताकी सृष्टिमें सर्व श्रेष्ठ व जगत्में सारभूत ऐसा एक कन्याका जोडा तुझे प्राप्त होगा." यह सुन कन्याका लाभ होते भी रानीको अपार हर्ष हुआ. ठीक है, चाहे पुत्र हो या पुत्री, परन्तु जो सर्वमें श्रेष्ठ हो तो किसको न भावे ? अस्तु, कुसुमसुन्दरी गर्भवती हुई. क्रमशः गर्भके प्रभावसे उसका शरीर फीका(पांडु)पड गया. मानो गर्भ पवित्र होनेके लिये पाण्डुवर्णके मिषसे वह निर्मल हुई हो. गर्भमें जडको (जलको) रखनेवाली कादंबिनी ( मेघमाला ) जो कृष्णवर्ण हो जाती है, तो गर्भ में जड (मृढ)को न रखनेवाली कुसुमसुन्दरी पाण्डुवर्ण हुई यह योग्य ही