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(६०५) लकुल निःसंशय है । उसने गुरुके पास परिग्रहपरिमाणवत ग्रहण किया है । वह अपने व्रतमें इतना दृढप्रतिज्ञ है कि सर्व देवता व इन्द्र भी उसे चलायमान नहीं कर सकते ! दूर तक प्रसरे हुए अपार लोभरूप जलके तीव्रप्रवाहमें अन्य सब तृणसमान बहते जावें ऐसे हैं। परन्तु वह कुमार मात्र ऐसा है कि जो कृष्णचित्रकलताकी भांति भीगता नहीं।" - जैसे सिंह दूसरेकी गर्जना सहन नहीं कर सकता वैसे ही चन्द्रशेखरदेवता नैगमेषीदेवताका वचन सहन न कर सका और तेरी परीक्षा करनेके लिये आया । पिंजरे सहित तेरे तोतेको हर लेगया । एक नई मैना तैयार की, एक शून्य नगर प्रकट किया, और एक भयंकर राक्षसरूप बनाया, उसीने तुझे समुद्रमें फेंका, और दूसरा भी डर बताया । पृथ्वीमें रत्नके समान हे कुमार! मैं वही चन्द्रशेखर देवता हूं। इसलिये हे सत्पुरुषः तू मेरे इन सर्व दुष्टकर्मोंकी क्षमा कर, और देवताका दर्शन निष्फल नहीं जाता, इसलिये मुझे कुछ भी आदेश कर," कुमारने देवताको कहा " श्रीधर्मके सम्यक्प्रसादसे मेरे संपूर्ण कार्य सिद्ध हुए हैं, इसलिये मैं अब तुझसे क्या मांगू ! परन्तु हे श्रेष्ठदेवता ! तू नंदीश्वरआदि तीर्थों में यात्राएं कर जिससे तेरा देवताभव सफल होगा।"चन्द्रशेखरदेवताने यह बात स्वीकार की, तोतेका पींजरा कुमारके हाथमें दिया, और कुमारको उठाकर शीघ्र ही कनकपुरीमें ला रक्खा । पश्चात् चन्द्रशेखरदेवता राजादिके सन्मुख